वह काफी देर तक अपने पिता के साथ परेशान होता रहा, लेकिन न अफसरों का दिल पसीजा, न वहां मौजूद लोगों का। यह घटना किसी ग्रामीण क्षेत्र के अस्पताल की नहीं, बल्कि प्रदेश के मॉडल अस्पताल कहलाने वाले राजधानी के जेपी अस्पताल की है।
दरअसल बागमुगलिया निवासी संजय कुमार गुरुवार को गर्भवती पत्नी को लेकर जेपी अस्पताल पहुंचा था। वहां दोपहर करीब एक बजे उसका प्रसव हुआ, लेकिन शिशु की मौत गर्भ में ही हो गई थी। शिशु के शव को घर ले जाने के लिए संजय वाहन की तलाश में जुट गया।
उसने वार्ड में मौजूद वार्ड बॉय और कर्मचारियों से पूछा, अधिकारियों से भी गुहार लगाई, लेकिन उसे वाहन नहीं मिला। वह इधर-अधर भटकता रहा और लोगों से मदद की गुहार भी लगाई। इस बीच किसी ने उसे बताया कि अस्पताल के बाहर कई एंबुलेंस खड़ी हैं तो संजय बेटे के शव को लेकर बाहर आ गया।
शव को अपने पिता के हवाले कर वह घंटे भर तक वाहन का इंतजार करता रहा। जब वाहन की व्यवस्था नहीं हुई तो वह शव को गोद में उठा कर करीब आठ किलोमीटर दूर बाइक से ही घर चला गया। उसकी पत्नी अभी अस्पताल में ही है।
संजय को नहीं पता था कहां मिलती है एंबुलेंस
संजय ने बताया कि उसे नहीं पता कि एंबुलेंस कहां मिलती है। वो मदद के लिए अस्पताल अधीक्षक डॉ. आईके चुघ के पास गए, लेकिन वे नहीं मिले। दरअसल ओपीडी का समय खत्म होने के कारण सभी डॉक्टर्स घर जा चुके थे। इस कारण संजय को मदद नहीं मिल सकी।
शव वाहन प्रदेश के किसी अस्पताल में नहीं
इसमें मामले में अस्पताल नहीं सरकार को दोष है। सरकारी अस्पतालों में ऐसा नियम ही नहीं है कि शव को ले जा सकें। प्रदेश के किसी भी सरकारी अस्पताल में शव वाहन नहीं है। वहीं 108 एंबुलेंस आ जाने के बाद कई अस्पतालों ने एंबुलेंस रखना ही बंद कर दिया है।
सरकार शव वाहनों की व्यवस्था करे
शव ले जाने की व्यवस्था नगर निगम करता है, सरकारी अस्पतालों में कोई नियम नहीं है, लेकिन सरकार को चाहिए कि जिला अस्पतालों मे व्यवस्था करे। हालांकि कई बार हम अपने स्तर पर व्यवस्था कर देते हैं।
– डॉ आईके चुघ, अधीक्षक, जेपी अस्पताल