गीला और सूखा पद्धति अधिक प्रभावी
प्रधान वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार त्रिपाठी ने बताया कि सिंचाई में लगने वाले अतिरिक्त पानी को बचाने के लिए मौजूदा समय में गीला और सूखा पद्धति अपनाई जा रही है। इसमें धान की फसल की सिंचाई का जलस्तर जमीन से अधिकतम पांच सेंटीमीटर पर रखा जाता है। इधर फसल की अगली सिंचाई तब की जाती है जब खेत में पानी का स्तर 10 सेंटीमीटर से नीचे आ जाए। यह प्रक्रिया पूरी फसल अवधि तक जारी रहती है। फसल की कटाई से 15 से 20 दिन पहले सिंचाई पूरी तरह बंद कर दी जाती है।
इन उपकरणों से धान की खेती होगी आसान
जल स्तर संकेतक: धान के खेत में जल स्तर की निगरानी के लिए जल स्तर संकेतक विकसित किया है। इसके जरिये खेत में तय पानी की मात्रा बनाई रखी जा सकती है। यह संकेतक मिट्टी की सतह के ऊपर और नीचे जल स्तर को दिखाता है। इसमें लगी छड़ पर लगे कलर कोड से जल स्तर की जानकारी मिलती है। यानी यदि खेत में पानी कमी होगी तो संकेतक से तय रंग प्रदर्शित होने लगेगा। ऐसे में किसान आवश्यकतानुसार पम्प के जरिये खेतों में पानी दे सकते हैं। केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी द्वारा तैयार किए गए इस संकेतक की कीमत 1400 रुपए है।
स्वचालित सिंचाई सिस्टम: साइंटिस्ट डॉ. मुकेश कुमार क मुताबिक इसे धान की फसल के लिए सिंचाई की गीला और सूखा तकनीक के लिए विशेष तौर पर तैयार किया है। इसके जरिये फसल को जरूरत के मुताबिक खेत में पानी के भराव की व्यवस्था की जा सकती है। इसमें खेत में सिंचाई का जल स्तर अधिकतम पांच सेंटीमीटर या इससे कम रखा जाता है। यहां भी एक सेंसर है, जो धान के खेत में मिट्टी की सतह के ऊपर और नीचे जलस्तर का पता लगाता है और पानी की कमी होने पर सिग्नल को वायरलेस तरीके से कंट्रोलर तक पहुंचाता है। ये सिस्टम सोलर पैनल से चार्ज होता है। कंट्रोलर (नियंत्रक इकाई) को धान की फसल के विकास चरणों के दौरान खेत में जल स्तर के आधार पर प्रोग्राम किया है। यह उपकरण सिंचाई पम्प को भी नियंत्रित करता है। 15 हजार की कीमत वाले इस उपकरण और सेंसर को संचालित करने के लिए किसानों को बुनियादी ट्रेनिंग दी जाएगी।
प्रधान वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार त्रिपाठी ने बताया कि सिंचाई में लगने वाले अतिरिक्त पानी को बचाने के लिए मौजूदा समय में गीला और सूखा पद्धति अपनाई जा रही है। इसमें धान की फसल की सिंचाई का जलस्तर जमीन से अधिकतम पांच सेंटीमीटर पर रखा जाता है। इधर फसल की अगली सिंचाई तब की जाती है जब खेत में पानी का स्तर 10 सेंटीमीटर से नीचे आ जाए। यह प्रक्रिया पूरी फसल अवधि तक जारी रहती है। फसल की कटाई से 15 से 20 दिन पहले सिंचाई पूरी तरह बंद कर दी जाती है।
इन उपकरणों से धान की खेती होगी आसान
जल स्तर संकेतक: धान के खेत में जल स्तर की निगरानी के लिए जल स्तर संकेतक विकसित किया है। इसके जरिये खेत में तय पानी की मात्रा बनाई रखी जा सकती है। यह संकेतक मिट्टी की सतह के ऊपर और नीचे जल स्तर को दिखाता है। इसमें लगी छड़ पर लगे कलर कोड से जल स्तर की जानकारी मिलती है। यानी यदि खेत में पानी कमी होगी तो संकेतक से तय रंग प्रदर्शित होने लगेगा। ऐसे में किसान आवश्यकतानुसार पम्प के जरिये खेतों में पानी दे सकते हैं। केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी द्वारा तैयार किए गए इस संकेतक की कीमत 1400 रुपए है।
स्वचालित सिंचाई सिस्टम: साइंटिस्ट डॉ. मुकेश कुमार क मुताबिक इसे धान की फसल के लिए सिंचाई की गीला और सूखा तकनीक के लिए विशेष तौर पर तैयार किया है। इसके जरिये फसल को जरूरत के मुताबिक खेत में पानी के भराव की व्यवस्था की जा सकती है। इसमें खेत में सिंचाई का जल स्तर अधिकतम पांच सेंटीमीटर या इससे कम रखा जाता है। यहां भी एक सेंसर है, जो धान के खेत में मिट्टी की सतह के ऊपर और नीचे जलस्तर का पता लगाता है और पानी की कमी होने पर सिग्नल को वायरलेस तरीके से कंट्रोलर तक पहुंचाता है। ये सिस्टम सोलर पैनल से चार्ज होता है। कंट्रोलर (नियंत्रक इकाई) को धान की फसल के विकास चरणों के दौरान खेत में जल स्तर के आधार पर प्रोग्राम किया है। यह उपकरण सिंचाई पम्प को भी नियंत्रित करता है। 15 हजार की कीमत वाले इस उपकरण और सेंसर को संचालित करने के लिए किसानों को बुनियादी ट्रेनिंग दी जाएगी।