पारधी और समाज के बीच खाई दूर करना लक्ष्य
अर्चना बताती हैं, आजादी के 74 साल बाद भी पारधी समाज मुख्यधारा से पूरी तरह अलग है। सरकार की तमाम योजनाएं इस खाई को दूर करने में सफल नहीं हुईं। ऐसे में किसी न किसी को इस खाई को कम करना था, लिहाजा उन्होंने इस ओर कदम बढ़ाए। उन्होंने बताया कि पढ़ाई के दौरान पारधी समाज के बारे में जानने का मौका मिला। पता चला कि ये समाज पूरी तरह शिकार पर आश्रित है। मप्र में इनकी आबादी 4 से 5 फीसदी है, पर विड़बंना यह है कि ये समाज किसी जिले में अनुसूचित जाति तो कहीं अनुसूचित जनजाति वर्ग में आता है। कई जिलों में ये समाज सामान्य वर्ग में है। शिक्षा का स्तर तकरीबन शून्य होने से ये शासन की योजनाओं से दूर हैं।
अर्चना बताती हैं, आजादी के 74 साल बाद भी पारधी समाज मुख्यधारा से पूरी तरह अलग है। सरकार की तमाम योजनाएं इस खाई को दूर करने में सफल नहीं हुईं। ऐसे में किसी न किसी को इस खाई को कम करना था, लिहाजा उन्होंने इस ओर कदम बढ़ाए। उन्होंने बताया कि पढ़ाई के दौरान पारधी समाज के बारे में जानने का मौका मिला। पता चला कि ये समाज पूरी तरह शिकार पर आश्रित है। मप्र में इनकी आबादी 4 से 5 फीसदी है, पर विड़बंना यह है कि ये समाज किसी जिले में अनुसूचित जाति तो कहीं अनुसूचित जनजाति वर्ग में आता है। कई जिलों में ये समाज सामान्य वर्ग में है। शिक्षा का स्तर तकरीबन शून्य होने से ये शासन की योजनाओं से दूर हैं।