शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का जिम्मा संभालने वाली भोपाल सिटी लिंक लिमिटेड (बीसीएलएल) ने शहर में 16 रूट तय कर यहां बस सुविधा दे रखी है। दावा है कि आने वाले समय में पांच नए रूट्स शुरू करेंगे, बावजूद इसके मौजूदा स्थिति के अनुसार शहर के हर कोने में बस भेजने करीब 24 नए रूट्स की अतिरिकत दरकार रहेगी। एक अनुमान के अनुसार शहर में कम से कम 45 रूट की जरूरत है। बीसीएलएल इसके लिए लगातार सर्वे कर बसें शुरू कर भी रहा है। संभव है आने वाले समय में कुछ नए रूट्स और उनपर बसें संचालित हो।
गौरतलब है कि बीसीएलएल ने 2010 से ही लो-फ्लोर बसों के माध्यम से शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का नया सिलसिला शुरू किया था। बीते नौ साल में करीब 300 बसों को रूट्स पर उतारा। 2011 से 2013 के बीच 220 करोड़ रुपए की लागत से 225 बसें शहर की सडक़ों पर उतारी। इसके बाद 2017 को मिडी बसों के तौर पर 102 बसें फिर संचालित की गई।
ऐसे समझे जरूरत – अवधपुरी विद्यासागर तक ही बस है। इसके आगे पांच किमी तक बीडीए जैसी बड़ी कॉलोनियां है, यहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है।
– निजामुद्दीन कॉलोनी में फोर लेन रोड बन गई, लेकिन बस सेवा संचालित नहंी हो पाई।
– कोलार के संस्कार उपवन से सलैया व 12 नंबर तक का रूट फोर लेन है, कई कॉलोनियां विकसित है, लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है।
– आशिमा मॉल से केंद्रीय विद्यालय और इससे लगी हुई कॉलोनियों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं।
– गोपाल नगर एसओएस बालग्राम एक बड़ा रहवासी क्षेत्र है, लेकिन बसें नहीं है।
– सलैया की और पूरा क्षेत्र ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट मामले में खाली है। – कोलार के सीआई स्क्वायर से दानिशकुंज चौराहा और यहां से कलियासोत ब्रिज पार कर आने वाली कॉलोनियों के लिए कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहंी, जबकि फोर लेन रोड है।
नोट- इसी तरह शहर में तमाम क्षेत्रों में फोर लेन रोड होने के बावजूद यहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट मजबूत तो जाम और पार्र्किंग की दिक्कत भी दूर पब्लिक ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट जीएस गुलाटी का कहना है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट हर कॉलोनी में हो तो लोग अपनी गाड़ी छोड़ेंगे। सडक़ों पर निजी वाहन कम होने से जाम की स्थिति कम होगी तो बाजारों में पार्र्किंग की दिक्कत भी नहीं रहेगी।
सडक़ पर ऐसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट
शहर में करीब 3500 किमी लंबी सडक़ें। इसमें मुख्य व इनके सहायक सडक़ों की लंबाई 900 किमी के करीब। अभी इसमें से 450 किमी पर ही पूरी बसें चल रही। हर क्षेत्र तक बसें पहुंचाने अभी कम से कम 450 से 500 किमी की सहायक सडक़ों पर भी बसों की जरूरत है।
ट्रंक रूट- ये मुख्य मार्ग है। लो-फ्लोर बसों का संचालन होता है। स्टैंडर्ड रूट- कॉलोनियों के प्रमुख मार्ग जो कॉलोनियों को मुख्य मार्गों से जोड़ती है। यहां पर छोटी बसों से ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था।
कांप्लीमेंट्री रूट- ये कॉलोनियों के मुख्यमार्गों तक का पहुंच मार्ग है। यहां मैजिक जैसे वाहन संचालित।
इंट्रा पैसेंजर रूट- ये गलियों के करीब वाली छोटी सडक़ों से यात्रियों को कांप्लीमेंट्री या फिर स्टैंडर्ड रूट तक पहुंचाने के लिए। यहां ऑटो, रिक्शा जैसे वाहन संचालित।
नोट- 2013 में बीआरटीएस शुरू होने के साथ ही इस व्यवस्था को लागू करना था, लेकिन अब तक ये लागू नहीं हो पाई।
मुख्यमार्गों पर ही पूरा ट्रांसपोर्ट इसलिए ही दिक्कत लो-फ्लोर के साथ सिटी बसें, मैजिक, ऑटो, रिक्शा, ई-रिक्शा जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जुड़े तमाम वाहनों का दबाव मुख्यमार्गों पर ही है। कमाई वाले इन मार्गों को छोडऩे कोई तैयार नहीं है। शहर के पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सिस्टम अब तक नहीं बन पाने की बड़ी वजह यही है।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मजबूत करने के लिए हम नए रूट्स का सर्वे, नई बसों का संचालन लगातार कर रहे हैं। लोगों की डिमांड लगातार बनी रहती है, लेकिन हमें फ्रिक्वेंसी का भी ध्यान रखना पड़ता है। हम इसके लिए काम कर रहे हैं।
– संजयकुमार, सीइओ, भोपाल सिटी लिंक लिमिटेड