राजधानी में केरवा डैम से लेकर कलियासोत डैम, शाहपुरा तक बाघों के दिखने की खबर आती है। पिछले कुछ समय पहले एक तेंदुआ भी शहर के भीतर ही आ गया था। मंगलवार शाम को एक बार फिर एक बाघिन अपने दो शावकों के साथ कलियासोत डैम के आसपास की सड़कों पर घूमते हुए नजर आई। किसी ने यह तस्वीरें अपने मोबाइल में कैद कर ली।
राहगीरों के मुताबिक बाघिन के पीछे दो शावक भी नजर आए। लोग एकत्रित होने लगे तो बाघिन आक्रमक हो गई थी। उन्होंने यह भी बताया कि जिस क्षेत्र में बाघिन दिखाई दी, उसी के आसपास उसने एक बछड़े का शिकार किया था। शायद इसी लिए वो आक्रामक हो रही थी।
भोपाल सामान्य वन मंडल के रेंजर ने बाघिन टी-1232 होने की पुष्टि की है। यह भी बताया कि उसके साथ दो शावक भी थे। बाघिन की सुरक्षा को देखते हुए राहगीरों को कुछ समय के लिए रोक दिया गया था।
गौरतलब है कि बाघिन टी-123 ने चार साल पहले दो शावकों को जन्म दिया था। उसमें से एक का नाम बाघ टी-1231 और दूसरे का नाम बाघिन टी-1232 है।
कई बार शहर में आ जाते हैं वन्य जीव :-:
शहर का पूरा इलाका था बाघों से घिरा :-:
मध्यप्रदेश के वन विभाग के पास 1960 का भोपाल का नक्शा मौजूद है, जिसमें दिखाया गया है कि भोपाल में कहां-कहां बाघों का ठिकाना था। नक्शे के मुताबिक पुराना भोपाल छोड़ दें तो नए भोपाल का लगभग पूरा इलाका बाघों का था, पर आज इन इलाकों में कंक्रीट की इमारतें खड़ी हैं। 1960 तक भोपाल का केरवा, कलियासोत क्षेत्र बाघों से भरा हुआ था। 1980 के दशक तक इन जंगली इलाकों में जब रसूखदारों ने दस्तक दी तो बाघों के आशियाने उजड़ गए। मध्यप्रदेश को हाल ही में टाइगर स्टेट का दर्जा भी मिला है।