भोपाल। पूरी दुनिया में भोपाल को गैस त्रासदी के कारण भी जाना जाता है। विश्व की यह भीषण त्रासदी को याद करते ही एक तस्वीर सामने उभरकर आ जाती है, जो इस भयंकर त्रासदी की पूरी कहानी कह देती है। उस तस्वीर में एक बच्चे का चेहरा नजर आ रहा है, वह जमीन में दफन है और आंखें खुली हुई है।
mp.patrika.com इतिहास के पन्नों से वह घटना बताने जा रहा है जिसकी तस्वीर देखते ही हर किसी की आंखों में आज भी आंसू आ जाते हैं। यह घटना 33 साल पुरानी है और विश्व विख्यात फोटोग्राफर रघु राय के कैमरे में कैद हो गई थी…।
रघु राय बताते हैं गैस त्रासदी के दूसरे दिन 3 दिसंबर को वे हमीदिया अस्पताल और आसपास में मृतकों की तस्वीरें खींचने के लिए निकले थे। जब वे श्मशान घाट के बाद कब्रस्तान में मृतक संख्या का जायजा ले रहे थे, तभी वहां एक बच्चे का शव दफन किया जा रहा था।
राय बताते हैं कि वह मासूम सा चेहरे वाला बच्चा था, जिसकी आंखें भी बंद नहीं हो पाई थी। राय ने तुरंत वह तस्वीर खींच ली। इसके बाद उस पर मिट्टी डाल दी गई। तस्वीर खींचने के बाद थोड़ी देर के लिए वे भी अवाक रह गए कि क्यों इस मासूम बच्चे के ऊपर मिट्टी डाली जा रही है क्यों उसे दफना दिया गया। राय के दिल में यह बात काफी भीतर तक घर कर गई, वे काफी देर तक इसी बारे में सोचते रहे। उनकी रूह भी कांप गई थी। वे सोच रहे थे कि मैं उन लोगों को नहीं रोक सका।
बाद में बन गई गैस त्रासदी की तस्वीर
बच्चे के दफन करने वाली यह तस्वीर आज स्बोल सी बन गई, वह किसी स्मारक की तरह नजर आने लगी। पत्र-पत्रिकाओं और दुनियाभर की मैगजीन में यही तस्वीर लगने से दुनियाभर के लोगों को यह तस्वीर गैस त्रासदी की ही स्मारक लगती है।
बच्चे के दफन करने वाली यह तस्वीर आज स्बोल सी बन गई, वह किसी स्मारक की तरह नजर आने लगी। पत्र-पत्रिकाओं और दुनियाभर की मैगजीन में यही तस्वीर लगने से दुनियाभर के लोगों को यह तस्वीर गैस त्रासदी की ही स्मारक लगती है।
राय बताते हैं कि जब बड़े-बजुर्ग मरते हैं तो व्यक्ति अपने आपको यह समझा लेता है कि उनकी उम्र अधिक थी, लेकिन जब मासूम बच्चों को पीड़ा होती है तो उसकी तकलीफ हर कोई महसूस करने लगता है।
राय गैस त्रासदी को बेहद दुखद मानते हैं वे अक्सर कहते हैं कि भोपाल की यह घटना याद करने लायक तो नहीं हैं। क्योंकि वो घटना ऐसी भयानक थी कि जिसका असर आज भी हैं, उस घटना के कारण पीड़ित लोग आज भी मर रहे हैं।
-जिन लोगों के शरीर में ज्यादा गैस चली गई थी उनकी तो उसी दिन मौत हो गई, लेकिन कहा जाता है कि वे लोग काफी भाग्यशाली थे, जो चल बसे।
-गैस झेलने वाले लोग जो आज जीवित है वे तिल-तिल कर मर रहे हैं।
-गैस झेलने वाले लोग जो आज जीवित है वे तिल-तिल कर मर रहे हैं।
शोध के लिए रखी हैं खोपड़ियां
दुनिया की इस भीषण त्रासदी में मारे गए लोगों को खोपड़ियां आज भी हमीदिया अस्पताल में रिसर्च के लिए रखी गई हैं। इसी के आधार पर शोध होता रहता है।
दुनिया की इस भीषण त्रासदी में मारे गए लोगों को खोपड़ियां आज भी हमीदिया अस्पताल में रिसर्च के लिए रखी गई हैं। इसी के आधार पर शोध होता रहता है।
जमीन नहीं बची थी, लकड़ियों का पड़ गया था अकाल
गैस त्रासदी के बाद मृतकों की संख्या इतनी थी कि कब्रस्तानों में जमीन नहीं बची थी और शवों को जलाने के लिए लकड़ियां खत्म हो गई थी। कुछ लोग ऐसा भी बताते हैं कि उस दौर में कई लाशों को ट्रकों में भरकर नर्मदा में फेंक दिया गया था। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि उस समय जब कब्रस्तान में जमीन कम पड़ गई थी। नई कब्र खोदने के वक्त भी जब जमीन में गड्ढा किया जाता था तो उसमें एक लाश दफन मिलती थी।
गैस त्रासदी के बाद मृतकों की संख्या इतनी थी कि कब्रस्तानों में जमीन नहीं बची थी और शवों को जलाने के लिए लकड़ियां खत्म हो गई थी। कुछ लोग ऐसा भी बताते हैं कि उस दौर में कई लाशों को ट्रकों में भरकर नर्मदा में फेंक दिया गया था। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि उस समय जब कब्रस्तान में जमीन कम पड़ गई थी। नई कब्र खोदने के वक्त भी जब जमीन में गड्ढा किया जाता था तो उसमें एक लाश दफन मिलती थी।