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बड़े शहरों में ही है संभावनाएं, इसलिए मप्र छोड़ रहे हैं रंगकर्मी

locationभोपालPublished: Sep 19, 2018 09:53:14 am

Submitted by:

KRISHNAKANT SHUKLA

राज्य संग्रहालय में ‘मप्र में रंग आंदोलन की नई दिशा’ विषय पर विमर्श
 

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बड़े शहरों में ही है संभावनाएं, इसलिए मप्र छोड़ रहे हैं रंगकर्मी

भोपाल। फिल्म और थिएटर को लेकर हर तरह की संभावनाएं बड़े शहरों में ही अधिक है, यही वजह है कि मप्र के विभिन्न जिलों से ताल्लुक रखने वाले एनएसडी पासआउट कलाकार दिल्ली, मुम्बई का रुख कर लेते हैं। जिस तरह मप्र शासन खिलाडिय़ों को जिला, संभाग या प्रदेश स्तर पर सुविधाएं और संभावनाएं मुहैया कराता है उस तरह रंगकर्म से जुड़े लोगों के लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए ताकि कलाकार अपने रूट्स से जुड़ा रहे।

सोमवार को राज्य संग्रहालय में ‘मप्र में रंग आंदोलन की नई दिशा’ विषय पर आयोजित विमर्श में कुछ इस तरह की बातों पर चर्चा हुई। मप्र शासन ओर संस्कृति विभाग की पहल के तहत पहली बार राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) से पासआउट मप्र के आर्टिस्ट के साथ इस तरह का दो दिवसीय विमर्श आयोजित किया जा रहा है।

 

शूटिंग के चलते नहीं आ सके कई एक्टर
इस विमर्श के लिए मप्र से ताल्लुक रखने वाले करीब 50 एनएसडियन को बुलाया गया था लेकिन कार्यक्रम का आमंत्रण देरी से मिलने के कारण गोविंद नामदेव, रघुबीर यादव, आशुतोष राणा और मुकेश तिवारी, गोदान जैसे बॉलीवुड एक्टर नहीं पहुंच सके। हालांकि व्यस्तता के बावजूद भी पीयूष मिश्रा, अशोक मिश्रा, टीकम जोशी जैसे करीब 30 नामी रंगकर्मी इस कार्यक्रम का हिस्सा बने।
स्थानीय रंगकर्मियों संग भी होगा विमर्श

पत्रिका प्लस से हुई बातचीत में अपर मुख्य सचिव, मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि संस्कृति विभाग मप्र के रंगकर्म को और अधिक समृद्ध बनाने का प्रयास कर रहा है, जिसके तहत यह विमर्श आयोजित किया गया है। इसके बाद स्थानीय कलाकारों के साथ भी जिला व राज्य स्तरीय विमर्श आयोजित किए जाएंगे ताकि मप्र के रंगकर्म में आने वाली दिक्कतों से भी रूबरू हो सकें। मंगलवार को इस विमर्श के समापन पर जो भी प्रमुख बिंदु सामने आएंगे उन पर अमल करने की पूरी योजना बनाई जाएगी।
पं.बंगाल में 88 हजार कलाकारों को मिलती है पेंशन
इस दौरान वरिष्ठ रंगकर्मी अशोक मिश्रा ने कहा कि प्रदेश में बुजुर्ग व नि:शक्त कलाकारों के लिए पेंशन की व्यवस्था होनी चाहिए। उन्होंने पं.बंगाल राज्य का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां के 88 हजार बुजुर्ग व नि:शक्त कलाकारों को सरकार पेंशन देती है।
उन्होंने कहा रंगकर्म में कई सारी स्कॉलरशिप का होना भी जरूरी है। कार्यशाला के को-ऑर्डिनेटर आलोक चटर्जी ने बताया कि यहां उन सभी विषयों पर बात की जाएगी जिससे मप्र के रंगकर्म को नई दिशा दी जा सके। कस्बे से लेकर भोपाल तक रंगकर्म को विकसित करना हमारा लक्ष्य है साथ ही लोककलाओं व आदिवासी कलाओं को जोडऩे के संबंध में भी बात होगी।
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