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बड़ी खबर: अयोध्या को लेकर ये बड़ा खुलासा करने जा रहे हैं राज्यपाल टंडन !

locationभोपालPublished: Nov 17, 2019 02:17:13 pm

-अपनी किताब में लिख रहे हैं कई अनकहे सच
– चार काल और 30 चेप्टर में बताएंगे इतिहास से लेकर व्यक्तिगत अनुभवों की दास्तां
– उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहते हुए अयोध्या मामलों से सीधे जुड़े थे टंडन

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भोपाल@डॉ. दीपेश अवस्थी की रिपोर्ट…

सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद फिर चर्चाओं में आए अयोध्या पर मध्यप्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन पुस्तक लिख रहे हैं। इसमें वे अयोध्या मामलों के अनकहे सच का खुलासा करेंगे। पुस्तक में चार खंड और 30 से अधिक चेप्टर होंगे।
इसमें मुगलकाल की अयोध्या, अंग्रेजों के शासनकाल की अयोध्या, आजादी के बाद की अयोध्या और आधुनिक काल में बदलती सरकारों और विवादों को समेटने की कोशिश की जा रही है। यह पुस्तक आधी से ज्यादा तैयार हो चुकी है। इसका संपादन राज्यपाल के सहायक विनय जोशी कर रहे हैं। वे कहते हैं कि राज्यपाल एक-एक अध्याय पर काम कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों में मंत्री रहे टंडन का अयोध्या से गहरा नाता रहा है। उनकी अयोध्या विवाद को सुलझाने में सक्रिय भूमिका रही है। टंडन मंदिर निर्माण के लिए 42 एकड़ भूमि आवंटन को महत्वपूर्ण कदम मानते हैं। वे पुस्तक में इस बात का खुलासा करेंगे कि मंदिर निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहित किए जाने के बाद सरकारों का रुख कैसा रहा।
पुस्तक में यह भी जिक्र रहेगा कि तत्कालीन केन्द्र सरकार की कथनी करनी में अंतर रहा। पुस्तक में इसका जिक्र होगा कि रामजन्म भूमि न्यास को जमीन सौंप दिए जाने और संसद द्वारा गठित समिति की संतुष्टि के बाद लगा कि समस्या का समाधान हो गया, लेकिन समिति की रिपोर्ट पर संसद में कोई कार्रवाई नहीं हुई और न ही तत्कालीन केन्द्र सरकार ने कोई दिशा निर्देश दिए। इससे लगा कि केन्द्र कह कुछ और रही है और कर कुछ और रही है।
24 घंटे में भूमि अधिग्रहित कर सौंप दी न्यास को –

राज्यपाल के सहायक जोशी बताते हैं कि अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए टंडन ने तीन दशक पहले 42 एकड़ जमीन अधिगृहित कर दे दी थी। वाकया वर्ष 1991 का है। तब कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। विश्वहिन्दु परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंघल चाहते थे कि राम मंदिर का निर्माण जल्द से जल्द हो। इस पर कल्याण ङ्क्षसह बोले कि कुछ वक्त दीजिए, लेकिन सिंघल इसके लिए तैयार नहीं थे। तब टंडन ने 24 घंटे का समय मांगा और इसी अवधि में अयोध्या में जमीन अधिगृहित कर श्रीराम जन्मभूमि न्यास को सौंप दी।
आंदोलन के पहले से जुड़े थे भूमि प्रकरण से –
वर्ष 1935 में जन्मे टंडन ने की पुस्तक इस बात का खुलासा भी करती नजर आएगी कि वे अयोध्या में विश्वहिन्दु परिषद के आंदोलन के बहुत पहले से श्रीराम जन्मभूमि प्रकरण से जुड़े रहे। सत्ता और संगठन में होने के नाते तमाम कार्यभार उनके पास रहा। इस आंदोलन के छोटे से छोटे कार्यकर्ता से लेकर शीर्षस्थ लोगों तक जीवंत संपर्क रहा। पुस्तक में इस बात का विशेष जिक्र होगा कि उस दौरान संसद में मंदिर की बात और उसकी चर्चा से परहेज करने वाले भी मंदिर की बात करने लगे। इसके पहले वे यहां बाबरी ढांचे का ही जिक्र करते थे।
संसद में हवाला दिया गया कि अयोध्या में एक मंदिर बनाने के लिए सैकड़ों मंदिर गिराए जा रहे हैं। उसी दौरान संसद की एक समिति यूपी के दौरे पर आई। इसमें बाबरी मस्जिद से समर्थक नेताओं की संख्या अधिक रही। राज्य सरकार की ओर पक्ष रखने के लिए टंडन को फैजाबाद भेजा गया। पूरे छह घंटे तक समिति के सदस्य सवाल पूछते रहे। एक-एक सवाल का जबाव दिया, आखिरकार समिति संतुष्ट होकर वापस गई।

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