उल्लेखनीय है कि कचरे का उचित निष्पादन और उपयोग करने के लिहाज से शहर के दस में से पांच कचरा ट्रांसफर स्टेशन पर बायोगैस प्लांट का निर्माण होना था। यहां पांच-पांच टन कचरे से रोज 1700 किलो बायोगैस बनाई जानी थी। यह सोचा गया था कि इस प्रयोग से शहर में ट्रांसफर स्टेशन पर कचरे का पहाड़ नहीं बन पाएगा। इससे आसपास के क्षेत्रों में गंदगी नहीं होगी। गीले कचरे को अलग करके खाद बनाई जाएगी। सिर्फ सूखा कचरा खंती भेजा जाएगा।
इस कचरे से नगर निगम को राजस्व मिलेगा। जो सोचा था उसके उलट ही हो रहा है। नगर निगम ने कचरे से बायोगैस बनाने के प्लांट निर्माण का कार्य इंदौर की कंपनी ब्रिक एंड बांड इन्फ्राकॉम को दिया था। बायोगैस प्लांट लगाने का काम एक महीने में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन एक वर्ष पूरा होने के बाद भी बायोगैस प्लांट स्थापित करने का काम पूरा नहीं हो सका है। कचरे के ढेर लग जाते हैं, जिनपर आवारा जानवर घूमते और गंदगी फैलाते रहते हैं। गर्मियों में यहां से गुजरना भी मुश्किल होगा। इस कचरे से मच्छर/मक्खी, बीमारियां फैलने की आशंका प्रबल हो गई है।
यहां के प्लांट भी बदहाल
महापौर आलोक शर्मा ने 10 जनवरी को शाहजहांनी पार्क स्थित मिथेनाइजेशन प्लांट का उद्घाटन किया था। इस प्लांट में गीले कचरे से दीनदयाल रसोई के लिए रोज 40 किलोग्राम बायोगैस उपलब्ध कराई जानी थी। शाहजहांनी पार्क यूनिट पर रोजाना पांच टन गीले कचरे की जरूरत है। इसके लिए सब्जी मंडी, पुराने शहर के होटलों, एमपी नगर के होटलों से गीला कचरा एकत्र होगा।
महापौर आलोक शर्मा ने 10 जनवरी को शाहजहांनी पार्क स्थित मिथेनाइजेशन प्लांट का उद्घाटन किया था। इस प्लांट में गीले कचरे से दीनदयाल रसोई के लिए रोज 40 किलोग्राम बायोगैस उपलब्ध कराई जानी थी। शाहजहांनी पार्क यूनिट पर रोजाना पांच टन गीले कचरे की जरूरत है। इसके लिए सब्जी मंडी, पुराने शहर के होटलों, एमपी नगर के होटलों से गीला कचरा एकत्र होगा।
कुल कचरे में से 40 फीसदी गीला कचरा निकाल लिया जाएगा। बाकी 60 फीसदी कचरे को खंती भेजा जाएगा। सभी पांच स्थानों पर कुल 15 से 20 टन कचरे की जरूरत होगी। इसके अलावा बची हुई गैस से बिजली बनाने की प्लानिंग थी, लेकिन गैस बनने की प्रक्रिया तेज नहीं हो सकी। बिट्टन मार्केट के बाद शहर का यह दूसरा बायोगैस प्लांट है, जो पर्याप्त कचरा न मिलने से सफल नहीं हो पा रहा है। शाहजहानी पार्क के प्लांट से दीनदयाल रसोई के लिए बायोगैस की आपूर्ति होती तो खर्च होने वाले 5 से 6 हजार रुपए तक के गैस सिलेंडर बच जाते।
मैंने अभी ज्वाइन किया है। इस प्रोजेक्ट के बारे में पहले पता करता हूं, उसके बाद ही कुछ बता सकूंगा।
– मयंक वर्मा, अपर आयुक्त, नगर निगम