भाजपा के बडे नेता भी इसे अब शुभंकर मानने लगे हैं, यही वजह है कि हिन्दू संवत, कालचक्र और मूहर्त को अनदेखा किया गया है। हालांकि कडवे दिनों का तोड निकालने के लिए मुख्यमंत्री ने जंबूरी मैदान में कार्यक्रम स्थल का मूहर्त में भूमिपूजन कर वास्तुदोष टाला है, वहीं कार्यक्रम स्थल पर गणेश चतुर्थी के दिन अटल बिहारी बाजपेयी की याद में प्रदर्शनी लगाकर इसका उदघाटन कर इसकी शुरुअआत भी कर दी।
भाजपा नेताओं का मानना है कि इसके चलते अब मोदी का चुनावी शंखनाद पर कडवे दिन का असर नहीं आएगा। यहां एक ओर चौकाने वाली बात यह है कि मुख्यमंत्री पिछले दो बार के चुनाव 2008 और 2013 में अपनी जनआर्शिवाद यात्रा का समापन भी 25 सितंबर यानी दीनदयाल जयंती पर करते आए हैं, लेकिन इस बार उन्होंने यह परंपरा तोडी है। इसकी मुख्य वजह प्रदेश में एट्रोसिटी एक्ट के विरोध में बनता माहौल है।
इस बार के चुनाव पिछले दो चुनावों से काफी भिन्न हैं। इस बार के चुनाव में विकास और पार्टी मुददा नहीं रहे, इस बार सवर्ण, पिछडा और एससी—एसटी जाति मुददा बन गया है। इससे अकेले भाजपा ही नहीं कांग्रेस भी खासी परेशान है। वर्तमान हालात को देखते हुए राजनीतिक पंडित भी प्रदेश की राजनीति के भविष्य के बारे में बोलने से बच रहे हैं। सही बात तो यह है कि इस बार राजनीति का उंट किस करवट बैठेगा यह कोई नहीं समझ पा रहा है।