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भाजपा: कहीं बागी कांग्रेस के संपर्क में तो कहीं टिकट कटने का खतरा बना मुश्किल…

locationभोपालPublished: Feb 06, 2019 01:19:02 pm

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले MP की अपनी इन सीटों को बचाने में जुटी भाजपा!…

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भाजपा: कहीं बागी कांग्रेस के संपर्क में तो कहीं टिकट कटने का खतरा बना मुश्किल…

भोपाल। लोकसभा चुनावों से पहले जहां एक ओर दोनों मुख्य पार्टियां कांग्रेस व भाजपा अपनी जीत के लिए पूरी तैयारियां करने में जुटी हुईं हैं। वहीं एक दूसरे के असंतुष्ट नेताओं को लेकर भी रणनीति पर कार्य किया जा रहा है।


जानकारों का मानना है कि किसी भी पार्टी के असंतुष्ट यदि अपने क्षेत्र में मजबूत स्थिति रखते हैं। तो व अपनी उस पार्टी को जिससे वे असंतुष्ट हैं भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इन्हीं सभी समीकरणों को देखते हुए भी पार्टियां अपनी रणनीति में धार दे रही हैं।


असंतुष्टों के मामले में अब तक जो बातें सामने आ रही हैं, उसमें भाजपा को बड़ा झटका लगने का अंदेशा जताया जा रहा है। दरअसल चर्चा है कि इन दिनों भाजपा के कई बागी नेता सीएम कमलनाथ के संपर्क में बने हुए हैं। इनमें से एक रामकृष्ण कुसमारिया को भी बताया जाता है।

तो भाजपा के लिए खड़ी होगी परेशानी!…
दरअसल जो बातें सामने आ रहीं हैं उनके अनुसार भाजपा से बगावत करके विधानसभा चुनाव लड़े वरिष्ठ नेता रामकृष्ण कुसमारिया अब राहुल गांधी के हाथों कांग्रेस ज्वाइन कर सकते हैं। बताया जाता है कि वो अभी CM कमलनाथ के संपर्क में हैं। वहीं 8 फरवरी को मध्यप्रदेश आ रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सभा के दौरान वे कांग्रेस की सदस्यता ले सकते हैं।

पूर्व में ये हुआ था असर…
रामकृष्ण कुसमारिया ने विधानसभा चुनावों में टिकट न मिलने पर नाराज होकर दो सीटों से निर्दलीय चुनाव लड़ा और दोनों सीट पर BJP हार गई। रामकृष्ण कुसमरिया इन दिनों कांग्रेस के संपर्क में हैं और मुख्यमंत्री कमलनाथ से मुलाकात कर चुके हैं।

जानकारों का मानना है कि यदि ये मुलाकात कुछ रंग लाती है, तो बीजेपी को अपने गढ़ बुंदेलखंड में भारी नुकसान सहना पड़ सकता है, क्योंकि बुंदेलखंड की 4 लोकसभा सीट पर बीजेपी ने 2014 में चारों पर जीत हासिल की थी।


भाजपा के सांसदों का इन तीन सीटों पर फंसा पेंच,कट सकता है टिकट…
वहीं दूसरी ओर विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बुंदेलखंड में नुकसान होने के बाद, एक बार फिर इस क्षेत्र को लेकर भाजपा में चिंता गहरा गई है।

दरअसल बुंदेलखंड में अभी जिन तीन बड़ी सीटों पर लंबे समय से भाजपा का कब्जा है, उन सीटों पर इस बार हार का खतरा मंडरा रहा है। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट बैंक को इसी इलाके में बड़ा नुकसान हुआ है।

ऐसे में टीकमगढ़, खजुराहो और दमोह सीट पर भाजपा को प्रत्याशी चयन को लेकर चिंताएं शुरू हो गईं हैं। जानकारों का मानना है कि इन सीटों पर विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी अंदरूनी गुटबाजी और सत्ता विरोधी लहर के कारण परिणाम नुकसानदेह साबित हो सकता है।

लोगों से दूरी ने घटाया खटीक का प्रभाव
चर्चा है कि यहां के सांसदों जो मंत्री बन चुके हैं, उनमें से कुछ अपने लोगों के बीच में रहते तो हैं लेकिन उल्लेखनीय कार्य नहीं कर पाते। वहीं दूसरी ओर सांसद लोग यहां कोई बड़ी योजना नहीं ला पाए हैं। ऐसे में उनके पास इस बार जनता के बीच जाकर अपने उपलब्धियां गिनाने के नाम पर सिर्फ महामना एक्सप्रेस को छतरपुर से शुरू करना ही जाता है।

बताया जाता है कि ऐसे में इस बार वोटरों में उनके खिलाफ भारी नाराजगी है। वहीं विधानसभा चुनाव में भी कुछ जगहों पर भाजपा सांसदों का काफी विरोध हुआ था।

खजुराहो और दमोह भी न निकल जाएं हाथ से!…
2014 में मोदी लहर में कई आम नेता भी सांसद और विधायक बने, लेकिन पांच सालों में उन्होंने क्या काम किए इसको लेकर उनके पास कोई खास काम बताने के लिए नहीं है।

खजुराहो से नागेंद्र सिंह के अब विधायक हो जाने से सांसद की यह सीट अब खाली हो चुकी है। वहीं पार्टी के पास अब दूसरा कद्दावर चेहरा चुनने की चुनौती है। जबकि उपलब्धियों की गिनती के मामले में यहां भी कुछ खास नहीं बताया जाता।

इसके अलावा छतरपुर जिले की दो विधानसभाएं राजनगर और चंदला इस लोकसभा सीट का हिस्सा हैं। दुर्भाग्य से इन दोनों सीटों पर कभी कभार ही सांसद के दर्शन हुए। कुछ कार्यकर्ताओं ने तो यहां उनके लापता होने के पोस्टर तक चिपका दिए थे।

 

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तकरीबन यही हाल दमोह लोकसभा सीट का भी है। यहां से सांसद प्रहलाद पटेल हैं। छतरपुर जिले से इस सीट की सिर्फ एक विधानसभा सीट बड़ामलहरा शामिल होती है। इस विधानसभा में प्रहलाल पटेल का आना-जाना तो रहा लेकिन क्षेत्र में पलायन, पेयजल संकट, किसानों की समस्याओं को वे दूर नहीं कर सके। जिसको लेकर जनता उनका भी विरोध कर सकती है।


जानिये बुंदेलखंड से जुड़ी ये खास बातें…
LODHI और KURMI बाहुल्य है इलाका: जहां तक बुंदेलखंड इलाके की बात करें तो ये इलाका लोधी और कुर्मी बाहुल्य इलाका है। खासकर बुंदेलखंड की दमोह संसदीय सीट की बात करें तो 2014 में यहां से बीजेपी ने प्रहलाद पटेल को उतारा था और लोधी होने के कारण लोधी बाहुल्य संसदीय सीट पर प्रहलाद पटेल ने बड़ी जीत हासिल की थी,

 

लेकिन मप्र के 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मजबूत रणनीति अपनाते हुए दमोह संसदीय सीट की आठ विधानसभाओं में जमकर घुसपैठ की और लोधी नेताओं को चुनाव में उतारकर बीजेपी से तीन विधानसभा सीटें बड़ामलहरा, दमोह और बंडा सीट छीन ली।

 

 

 

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इन तीनों सीटों से कांग्रेस ने लोधी प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था और तीनों ही प्रत्याशियों ने चुनाव जीता। ऐसे में अब कांग्रेस की नजर दमोह संसदीय सीट पर है, जो अभी भाजपा के कब्जे में है। ऐसे में क्षेत्र में भाजपा के दिग्गज असंतुष्ट नेता रामकृष्ण कुसमारिया की कमलनाथ से मुलाकात के यहीं मायने निकाले जा रहे हैं।
बुंदेलखंड में भाजपा के मजबूत और अजेय यौद्धा…
बुंदेलखंड इलाके में रामकृष्ण कुसमारिया बीजेपी के बड़े कुर्मी नेता हैं, वो कई बार बुंदेलखंड इलाके में अलग-अलग सीटों से लोकसभा और मप्र विधानसभा में बीजेपी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
चाहे 2008 में परिसीमन के पहले की खजुराहो लोकसभा सीट हो या फिर दमोह, पन्ना लोकसभा सीट हो, दोनों सीटों से रामकृष्ण कुसमारिया लोकसभा पहुंचे हैं। वहीं विधानसभा चुनावों में दमोह जिले की हटा और पथरिया सीट से वो मप्र विधानसभा पहुंचकर कृषि मंत्री का पद कैबिनेट मंत्री के रूप में संभाल चुके हैं।
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जानिये कब कहां कैसे मिले थे सीएम कमलनाथ व कुसमारिया…
सामने आ रहीं सूचनाओं के अनुसार 19 दिसम्बर 2018 यानि बुधवार के दिन मुख्यमंत्री कमलनाथ के बंगले पर रामकृष्ण कुसमारिया और कमलनाथ की मुलाकात हुई थी। कमलनाथ के बंगले पर ये मुलाकात करीब 20 मिनट चली थी। इस मुलाकात के बाद से ही ये कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी की मौजूदा परिस्थितियों और कांग्रेस के लोकसभा के लक्ष्य को देखते हुए रामकृष्ण कुसमारिया कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं।

कांग्रेस में भी दिक्कतें कम नहीं…
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के आपस में भिड़ने का मामला सामने आने के बाद बुधवार यानि 6 फरवरी को सतना में कांग्रेस एक्शन मोड में दिखी। इसके चलते अनुशासनहीनता करने वाले जिला अध्यक्ष को हटा दिया गया है।

दरअसल सतना के मझगवां में कांग्रेस लोकसभा प्रत्याशी की रायशुमारी के दौरान यह विवाद हुआ था। इस दौरान झूमा झटकी होने से लेकर कुर्सियां तक फेंकी गई थी। वहीं जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के लिए भी इस तरह की स्थिति असान नहीं है, तभी तो अब तक बाबरिया के मामले में बड़ा एक्शन नहीं लिया गया है।

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