अब आप सोच रहे होंगे कि कमलनाथ के सामने ‘कमल’ चुनौती कैसे? तो हम विस्तार से आपको बताएंगे कि मध्यप्रेदश में कमलनाथ के लिए ‘कमल’ चुनौती कैसे है और क्यों है. इसके लिए हम सबसे पहले 2009 लोकसभा चुनाव की बात करते हैं. मध्यप्रदेश के 29 सीटों पर हुए चुनाव में एक तरफ कमल यानी भारतीय जनता पार्टी ने 16 सीटों पर चुनाव जीती थी. वहीं, कांग्रेस ने 12 सीटों पर कब्जा जमाया था जबकि बीएसपी को मात्र एक सीट से संतुष्ट होना पड़ा था.
पार्टी सीट वोट % भाजपा 16 43.4
कांग्रेस 12 40.1
बसपा 1 5.9 अगर वोटिंग प्रतिशत की बात की जाए तो भाजपा को 43.4 फीसदी वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस को 40.1 प्रतिशत वोट जबकि बसपा को मात्र 5.9 फीसदी वोट प्राप्त हुआ था.
2018 विधानसभा चुनाव अब बात करते हैं 2018 विधानसभा चुनाव का… 2018 विधानसभा चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी. पार्टी ने 114 सीटों पर जीत दर्ज कर प्रदेश में कमलनाथ की नेतृत्व में सरकार बनाई लेकिन वोट शेयर में पार्टी यहां भी पीछे रही.कांग्रेस ने भले ही 114 सीटों पर जीत दर्ज की थी लेकिन वोटिंग प्रतिशत 41.5 फीसदी ही रहा, जबकि यहां के मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा को 109 सीटों पर जीत मिली थी जबकि वोट फीसदी 41.6 थी यानि की कांग्रेस से .1 फीसदी अधिक.
पार्टी सीट वोट %
कांग्रेस 114 41.5
भाजपा 109 41.6
बसपा 2 5.1
सपा 1 1.3
निर्दलीय 4 5.9
‘कमल’ कैसे कमलऩाथ को लिए चुनौती अगर वोटिंग फीसदी की तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो 2009 लोकसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस से .3 फीसदी अधिक वोट मिले थे जबकि 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा को .1 फीसदी अधिक वोट मिले. 2009 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से ४ सीटे ज्यादा जीती थी जबकि 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा को .1 फीसदी वोट अधिक होने के बावजूद भाजपा कांग्रेस से 5 सीटें कम रही.
ऐसे में कमलनाथ के पास सबसे बड़ा चुनौती ‘कमल’ ही है क्योंकि 2019 लोकसभा चुनाव में अगर भाजपा तीन से चार फीसदी वोट शेयर अधिक करने में सफल हो जाती है तो तय है पार्टी एक बार फिर मध्यप्रदेश में सबसे अधिक सीट जीत सकती है. ऐसे में ‘कमल’ को प्रदेश में रोकने के लिए कमलनाथ को वोट शेयर तो बढ़ाना ही होगा. ताकि पार्टी अधिक से अधिक सीटों पर जीत दर्ज कर सके.