पार्टी की रायशुमारी में भी यह फैक्टर देखने को मिला है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि जहां जिस सीट पर खतरा है वहा पार्टी नए चेहरा उतार सकती है। पार्टी को लग रहा है कि इन सीटों पर नए उम्मीदवारों को उतारने से वोटरों की नाराजगी दूर हो सकेगी। पिछली बार भी पार्टी ने लगभग 25 फीसदी उम्मीदवार बदल दिए थे, जिसके सकारात्मक नतीजे देखने को मिले थे।
2013 के विधानसभा चुनावों में हमने 25 प्रतिशत नए चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा था और इनमें से 75 उम्मीदवारों ने विजय हासिल भी की थी। भाजपा के रणनीतिकार भी मानते हैं कि यदि उन्होंने इस बार मंत्री—विधायकों के टिकट नहीं काटे तो उनकी पार्टी के लिए जीत की राह आसान नहीं होगी।
पिछले तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा ने जिन हालातों में जीत हासिल की है, इस बार वैसे हालात नहीं है। ऐंटी इन्कम्बेंसी के साथ ही कांग्रेस सहित अन्य दलों से भाजपा को कड़ी चुनौती मिल रही है।
जिसके चलते भाजपा को अपनी रणनीति में बार बार बदलाव करना पड़ रहा है। तमाम सर्वे में भाजपा के लगभग 70 विधायकों की जमीनी स्तिथि ठीक नहीं है, इनमे कई दिग्गज नेता और मंत्री भी शामिल हैं|
आरएसएस के फीडबैक के बाद बीजेपी में हड़कंप की स्तिथि है, पार्टी और विधायकों के खिलाफ लोगों में आक्रोश है जो चुनाव में असर डालेगा।
आरएसएस के फीडबैक के बाद बीजेपी में हड़कंप की स्तिथि है, पार्टी और विधायकों के खिलाफ लोगों में आक्रोश है जो चुनाव में असर डालेगा।
संघ ने भाजपा के 70 से ज्यादा मौजूदा विधायकों का टिकट काटने की सलाह दी है। साथ ही बीजेपी की जमीन बचाने संघ कार्यकर्ताओं को मैदान में उतरने की योजना है, जो भाजपा के पक्ष में माहौल बनाएंगे और भाजपा प्रत्याशी को जिताने की अपील करेंगे, हालाँकि आरएसएस कई बार कहा चुका है कि वह राजनीतिक दल की प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करता है।
अब जब संघ की और से दो टूक विधायकों की टिकट काटने की चेतावनी दी गई है तो लगभग 70 सिटिंग विधायकों का पत्ता कटना तय माना जा रहा है। हालांकि पार्टी पहले ही ऐसे नेताओं को चेतावनी जारी कर चुकी है, इसके बावजूद परफॉर्मेंस न सुधार पाए विधायकों को अब संगठन के काम में जोड़ा जाएगा और नए चेहरों को पार्टी मैदान में उतारेगी जो युवाओं को लुभा सके।