सबसे पहले ये नाटक पिछले साल २ अक्टूबर को गांधी भवन में मंचित किया गया था। इसका एक शो इंदौर में भी हो चुका है। नाटक की खास बात गांधी का रोल प्ले करते हुए कलाकार खुद भी गांधीवादी हो गया, वहीं गोडसे के वकील का रोल प्ले करने वाला किरदार में उग्रता का भाव आ गया।
सत्य और अहिंसा समाज को सीखाती है जीवन जीने की कला
ललित सहगल के लिखे इस नाटक का निर्देशन केजी त्रिवेदी ने किया। नाटक की प्रस्तुति त्रिकर्षि नाट्य संस्था के कलाकारों ने दी। नाटक में इस्तेमाल किए गया ओरिजनल चरखा करीब १२ साल पहले सीहोर से खरीदा गया था। इसका इस्तेमाल कुछ नाटकों में ही हुआ।
१२ साल पुराना यही चरखा ‘आकारÓ नाटक में सबसे महत्वपूर्ण प्रॉपर्टी साबित हुआ। वर्ष १९६५ में लिखे गए इस नाटक का पहला शो एक्टर कुलभूषण खरबंदा की टीम ने दिल्ली में किया था। नाटक में बताया कि आत्मा न पैदा होती है न मरती है, वो तो ऊर्जा की तरह बस रूप बदलती रहती है।
नाटक की शुरुआत महात्मा गांधी की हत्या की प्लानिंग कर रहे चार युवकों से होती है। इसमें से एक व्यक्ति विरोध करता है जिसके बाद कोर्टरूम का रोचक ड्रामा होता है। लेकिन संहिता के विपरीत जज पूर्व निर्धारित फैसला सुना देता है जिससे उस व्यक्ति की हत्या कर दी जाती है। नाटक के अंत में शंकित व्यक्ति को विचारों का भौतिक रूप देकर प्रस्तुत किया गया।