पिछले साल दो जून १९ तो पत्नि की भी कैंसर होने से मौत हो गए। चलने फिरने से मोहताज गजेंद्र सिंह के सामने १५ साल के हो चुके बच्चे की पढ़ाई और घर चलाने का संकट खड़ा हो च का है। वर्तमान में भी सहानाभूति रखने वाले दोस्तों के भरोसे ही इतना समय जैसे-तैसे उन्होंने निकाल लिया। स्प्रिंग वेली, कटारा हिल्स में किराए के मकान में रहने वाले गजेंद्र को नौ साल में भी शासन से कोई लाभ नहीं मिला। उनका अपंगता के लाइसेंस भी इस साल रिन्यू नहीं करवा सके।
-बैठने लायक उपचार की व्यवस्था के लिए हो रहे व्याकुल
गजेंद्र ने बताया कि डॉक्टर कह रहे है कि रोजाना थैरेपी करोगे तो चलने लायक नहीं तो बैठने लायक शरीर हो सकता है। रोजाना एक दिन छोड़कर भी थैरेपी उन्हे मिले तो उनके पतले होते जा रहे पैरों में बैठने लागक ताकत आ जाए,लेकिन उनके पास एक दिन छोड़कर ३०० रुपए थैरेपी के देने की व्यवस्था तक नहीं है। बिस्तर पर लेटे अपनी मौत के इंतजार से ज्यादा बच्चे की चिंता सता रही है। यूं तो अब उनका बेटा १५ साल का हो चुका है।
घर के काम पढ़ाई के साथ व कर रहा है। गजेंद्र सिंह कहते है कि जो पुराने मददगार दोस्त है, वह भी कब तक सहयोग करते। पिताजी भाई गव पर रहते हैं। उनका अपना परिवार है। मैंने अब भी जीने की हिम्मत नहीं हारी है। बैठने लायक भी हो जाऊ तो बैठे-बैठे ही कुछ माह कर लू। पत्नि के देहांत के बाद हिम्मत टूटने लगी है, कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। लोग कहते है कि शासन ऐसे लोगों को सहयोग करती है,लेकिन न तो मैं उन तक पहुंच पा रहा है और न हीं नौ सालों में कोई मेरे पास आया है।