पीएम 10 हवा में मौजूद ऐसे धूल कण हैं, जो एक समय के बाद नीचे बैठ जाते हैं, लेकिन पीएम 2.5 के पार्टिकल बेहद बारीक होते हैं, जो ज्यादा ऊंचाई तक उठते हैं और हवा में बने रहते हैं। वाहनों की लगातार आवाजाही से इनकी मात्रा हवा में बढ़ती जाती है। इसी वजह से ये सांसों के साथ न केवल फेफड़े, बल्कि खून तक पहुंच जाते हैं। यह पार्टिकल कैंसरकारक होते हैं, जिनसे अस्थमा से ज्यादा कैंसर का खतरा होता है।
डॉ. सुभाष सी पांडेय बताते हैं रिपोर्ट के विश्लेषण में सामने आया कि राजधानी में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहन हैं। वाहनों से निकलने वाले धुएं में कार्बन के साथ कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर और नाइट्रोजन भी होते हैं। यह जहरीले कण और गैसें कैंसर का कारक बनते हैं। लोग पैसे बचाने के लिए दूसरे राज्यों के खराब वाहन सस्ते में यहां ले आते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है। दिल्ली जैसे राज्य जहां 10 साल से पुरानी डीजल और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहनों पर रोक हैं वहां से बड़ी संख्या में वाहन लाए जा रहे हैं।
डॉ. श्याम अग्रवाल, कैंसर विशेषज्ञ