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लाखों वाहनों का धुआं घोल रहा शहर की फिजा में जहर, बढ़ रहा कैंसर का खतरा

locationभोपालPublished: Mar 03, 2020 01:13:41 am

शहर के प्रदूषण में पीएम 2.5 पार्टिकल सबसे ज्यादा, पीएम 10 से कई गुना खतरनाक हैं ये कण, अब हेलमेट के साथ मास्क पहनकर चलना जरूरी हो गया है

लाखों वाहनों का धुआं घोल रहा शहर की फिजा में जहर, बढ़ रहा कैंसर का खतरा

लाखों वाहनों का धुआं घोल रहा शहर की फिजा में जहर, बढ़ रहा कैंसर का खतरा

भोपाल. राजधानी में न केवल प्रदूषित हवा की मात्रा ज्यादा है, बल्कि ये अन्य शहर-कस्बे की तुलना में कैंसर जैसी घातक बीमारी देने वाला है। वजह है वाहनों से होने वाला भारी वायु प्रदूषण। शहर में 17.5 लाख वाहन रजिस्टर्ड हैं, इनमें से करीब 12 लाख शहर में ही चल रहे हैं। इनके रोज 20 लाख से अधिक फेरे सांस लेने वाली वायु में जहर घोल रहे हैं। ऐसे में अब हेलमेट के साथ मास्क पहनकर चलना जरूरी हो गया है। पर्यावरणविद् डॉ. सुभाष सी पांडेय की मानें तो उन्होंने 24 फरवरी को पोर्टेबल मशीन से शहर में 13 स्थानों से रेंडम सैम्पल लिए। इसकी जांच में पीएम 2.5 के बारीक पार्टिकल्स की मात्रा ज्यादा मिली। इन स्थानों में से कहीं भी वायु की गुणवत्ता सीपीसीबी द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं मिली, बल्कि हालात गंभीर हैं। सभी सैम्पलिग स्टेशन में लिए गए पीएम 2.5 घातक धूलकणों का औसत 138 रहा, जो तय अधिकतम मात्रा के दोगुने से अधिक है। सर्वाधिक प्रदूषण लाल घाटी चौराहे पर रहा, जहां पीएम 2.5 का मान 265 और पीएम 10 कणों का मान 464 मिला।
पीएम 2.5 के पार्टिकल सांसों से जाने की ज्यादा आशंका
पीएम 10 हवा में मौजूद ऐसे धूल कण हैं, जो एक समय के बाद नीचे बैठ जाते हैं, लेकिन पीएम 2.5 के पार्टिकल बेहद बारीक होते हैं, जो ज्यादा ऊंचाई तक उठते हैं और हवा में बने रहते हैं। वाहनों की लगातार आवाजाही से इनकी मात्रा हवा में बढ़ती जाती है। इसी वजह से ये सांसों के साथ न केवल फेफड़े, बल्कि खून तक पहुंच जाते हैं। यह पार्टिकल कैंसरकारक होते हैं, जिनसे अस्थमा से ज्यादा कैंसर का खतरा होता है।
पैसे बचाने के लिए सस्ते वाहन लाते हैं
डॉ. सुभाष सी पांडेय बताते हैं रिपोर्ट के विश्लेषण में सामने आया कि राजधानी में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहन हैं। वाहनों से निकलने वाले धुएं में कार्बन के साथ कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर और नाइट्रोजन भी होते हैं। यह जहरीले कण और गैसें कैंसर का कारक बनते हैं। लोग पैसे बचाने के लिए दूसरे राज्यों के खराब वाहन सस्ते में यहां ले आते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है। दिल्ली जैसे राज्य जहां 10 साल से पुरानी डीजल और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहनों पर रोक हैं वहां से बड़ी संख्या में वाहन लाए जा रहे हैं।
वाहनों से निकलने वाले धुएं में ऐसे कंपाउंड भी होते हैं जो हमारे जीन्स को डैमेज करते हैं। लगातार इनके प्रभाव में आने से हमारी कोशिकाएं शरीर के नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं और वह अनियंत्रित तरीके से विभाजन करने लगती है और यही कैंसर होता है। बाजार में अच्छी गुणवत्ता के मास्क उपलब्ध हैं जो पार्टिकल को अंदर नहीं आने देते।
डॉ. श्याम अग्रवाल, कैंसर विशेषज्ञ
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