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कार्ड बताएगा शादी के बाद कैसी होगी आपके बच्चे की सेहत

locationभोपालPublished: Jan 09, 2020 07:31:29 am

Submitted by:

Ram kailash napit

थैलेसीमिया और सिकलसेल एनीमिया से अगली पीढ़ी को बचाने आयुष विभाग ने तैयार किया पॉकेट कुंडली और वेब पोर्टल

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भोपाल. शादी के बाद हाने वाली संतान थैलेसीमिया और सिकलसेल एनीमिया जैसी वंशानुगत और गंभीर बीमारियों से पीडि़त तो नहीं हैं, इसका पता अब एक कार्ड से ही चल जाएगा। आयुष विभाग ने इन बीमारियों से जूझ रहे लोगों की पॉकेट कुंडली तैयार कर ये कार्ड तैयार किए हैं। दरअसल, सिकलसेल एनीमिया और थैलेसीमिया ऐसी बीमारी है जो माता-पिता से अंगली पीढ़ी में पहुंचती है। इस कार्ड के माध्यम से अब शादी के पहले ही इन दिक्कतों के बारें में जान जाएंगे। मालूम हो कि प्रदेश में तीन आदिवासी जातियां इन दोनों बीमारियों से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
जेनेटिक इन्हेरिटेंस प्रिडिक्शन कार्ड
शासकीय होम्योपैथी कॉलेज भोपाल के आदिवासी शोध विभाग के प्रोफेसर डॉ. निशांत केएम नंबीसन और उनकी पत्नी ने जेनेटिक इन्हेरिटेंस प्रिडिक्शन कार्ड तैयार किया है। आम बोलचाल में पॉकेट कुंडली कहते है। इसमें सिकलसेल एनीमिया और हीमोफीलिया से पीडि़तों का ब्यौरा दर्ज किया गया है। तीन रंगों के इस कार्ड में चारों तरफ हरे रंग का बार्डर होगा। जो व्यक्ति इन बीमारियों के वाहक हैं उनके कार्ड की बॉर्डर आधी हरी औरी आधी लाल होगी। वहीं पीडि़त के कार्ड की पूरी बॉर्डर लाल होगी।
दो लाल कार्ड से नहीं होगी शादी
विवाह के पहले युवक-युवती के कार्ड एक दूसरे के ऊपर रखते ही रंगों से पता चल जाएगा कि अगली पीढ़ी स्वस्थ होगी या बच्चे वाहक होंगे। रेड कार्ड मैच होने पर गंभीर जोखिम माना जाएगा। इससे अगली पीढी में सिकलसेल एनीमिया और थैलेसीमिया होने की संभावना के चलते शादी करने से रोका जा सकेगा।
पोर्टल से भी होगा कुडली मिलान
प्रो. नंबीसन ने एक पोर्टल भी तैयार कराया है। इसमें 11 भाषाओं में कुंडली मिलान की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। जीआईपी पोर्टल में कुंडली मैच करने की सुविधा पब्लिक डोमेन में दी गई है। इसे तीन प्रकार से बांटा गया है। वेब ब्राउजर में जेंडर सिलेक्ट करने के बाद मरीज की जांच रिपोर्ट या कार्ड के अनुुसार लेवल सिलेक्ट करने के बाद युवक-युवती की बीमारी का आंकलन करने के बाद पता चल सकेगा कि इस जोड़े की अगली पीढ़ी के बच्चे बीमारियों से ग्रस्त होंगे या उनमें कितने फ ीसदी बीमारी होने की संभावना है।
अब जनजातियों के अलावा दूसरे समुदायों में भी फैल रहीं बीमारियां
प्रो. नंबीसन के अनुसार जनजातीय क्षेत्रों में शोध के दौरान पाया गया कि बैगा, भारिया और सहरिया जनजाति के लोगों में ये बीमारियां पाई जाती हैं। अब गोंड, मेहरा, झारिया के अलावा ओबीसी और सामान्य वर्ग के लोगों में भी ये बीमारियां मिल रहीं हैं।
बदल जाते हैं ब्लड सेल
ब्लड सेल सामान्य रूप में सिक्के के आकार के होते हैं, जिससे वे आराम से प्रवाह करते हैं। सिकलसेल होने पर ब्लड सेल हंसिए जैसे हो जाते हैं और शरीर में ऑक्सीजन नहीं ले जा पाते। इस वजह से दर्द और शरीर में सूजन आने लगती है।

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