नाटक यस सर की शुरुआत एक सरकारी दफ्तर से होती है। जहां दफ्तर बंद होने का समय है। वहां एक अफसर नरोत्तम आता है, जो निम्न जाति से है। वहीं दफ्तर का प्यून तिवारी अगड़ी जाति का होता है। तिवारी को इस बात पर गुस्सा आता है कि नरोत्तम रिजर्वेशन के कारण उसका बॉस बन बैठा है।
तिवारी, नरोत्तम की किसी भी बात को मानने से इंकार कर देता है। वह अपने साथी को बताता है कि उसके पिता ग्यारह गांव के पंडित थे। उसकी भी गांव में काफी इज्जत है। यदि गांव में पता चला कि वह किसी निची जात वाले का हुक्म मानता है, तो उसका गांव जाना मुश्किल हो जाएगा।
वह अफसर को पानी पिलाना भी पंसद नहीं करता। कई बार अफसर नरोत्तम तिवारी को समझाने की कोशिश भी करता है, लेकिन तिवारी उससे बात करना भी पंसद नहीं करता। कई बार दफ्तर के साथ उसे भड़काने की कोशिशें भी करते हैं। धीरे-धीरे नरोत्तम उसकी बातों का बुरा मानना बंद कर देता है।
अंतत: नरोत्तम के सहयोग के चलते तिवारी को प्रमोशन मिल जाता है। जब उसे ये बात पता चलती है तो उसके दिल से जाति और भेद-भाव खत्म हो जाता है। अंतिम दृश्य में जब नरोत्तम के बाथरूम की नाली चौक हो जाती है तो वह उसे भी साफ करने के लिए तैयार हो जाता है। डायरेक्टर का कहना है कि नाटक के माध्यम से समाज और दफ्तरों में फैले जातिगत व्यवस्था पर कटाक्ष करने की कोशिश की गई है। ये बताया गया कि जातिगत व्यवस्था से देश को नुकसान उठाना पड़ता है।