अनायास दुर्घटना या बीमारी का शिकार हममें से कोई भी हो सकता है। आज हम सभी शिक्षित व सभ्य समाज के नागरिक है, जो केवल अपनी नहीं बल्कि दूसरों की भलाई के लिए भी सोचते हैं। मुझे हमेशा से ही लोगों के लिए कुछ करने की चाह थी। मैं जब 17 साल की थी मैंने तभी डिसाइड कर लिया था कि मुझे ब्लड डोनेट करना है। पर, उस वक्त उम्र कम होने से डॉक्टरर्स ने मुझे मना कर दिया। जैसे ही मैं 18 साल की हुई तो मैंने ब्लड डोनेट किया और तब से लेकर अब तक 13 बार ब्लड डोनेट कर चुकी हूं।
निडिल का दर्द खुशी देता है
अस्मा ने बताया कि कई बार लोग इसलिए ब्लड डोनेट नहीं करते क्योंकि उन्हें निडिल से डर लगता है। पर, मुझे यह दर्द वाली निडिल खुशी देती है। अच्छा लगता है जब आपके खून से किसी इसांन को नई जिंदगी मिलती है।
पहली बार कैंसर पेशेंट के लिए दिया था ब्लड
मुझे याद है कि जब मैं 18 की हुई तो मैंने पहली बार कैंसर पेशेंट के लिए ब्लड दिया था। जब मैं ब्लड दे रही थी, उस वक्त मुझे कोई खास फीलिंग नहीं आई, साफ शब्दों में कहूं तो मुझे ब्लड डोनेट करना था इसलिए कर रही थी। पर, जैसे ही मैं ब्लड देकर बाहर निकली, उस कैंसर पेशेंट की मां ने मुझे इस तरह ट्रीट किया जैसे मैं कोई एंजल हूं। वह पल मेरी जिंदगी का सबसे बेस्ट पल था।
खुशी खुशी करते है ब्लड डोनेट
संत हिरदाराम नगर में सत्संग के जरिए मानवसेवा कार्यो को लोगों तक पहुंचाने में जुटे निरंकारी मिशन के सेवादारों का कार्य काफी सराहनीय है। उन्होंने अपने गुरू बाबा हरदेव सिंह के कहने पर 1986 में पहला रक्त दान शिविर आयोजित किया था। क्योंकि उनके गुरू के अनुसार खून खराबा करने से अच्छा है, उसे किसी सार्थक कार्य में उपयोग किया जाएं। तब से अब तक संस्था द्वारा 5560 ब्लड डोनेशन कैंप लगाएं जा चुके है। जिसमें 95252 यूनिट ब्लड डोनेट किया जा चुका है।
निरंकारी संस्था द्वारा लगाए गए कैंप में कई सेवादारों द्वारा ब्लड डोनेशन किया जाता है। अब तक यह ब्लड कई लोगों की जान बचा चुका है। संस्था में कार्यरत कन्हैया लाल साधवानी ने बताया कि यहां कई लोग ऐसे आते है जो पहले तो थोड़ा डरते है। पर, यहां के माहौल को देखकर वे खुशी खुशी ब्लड डोनेट करते है। हम लोगों को अक्सर नुक्कड़ नाटक के द्वारा लोगों को प्रेरित करते है कि वे ब्लड डोनेट करने से डरे नहीं। क्योंकि आपका ब्लड किसी की जिंदगी बचा सकता है।
जब हम लोगों को ब्लड डोनेट करते है तो उस वक्त आउट आॅफ द वल्र्ड वाली फीलिंग होती है। वे हमें भगवान समझ लेते है। तब हम उन्हें बताते है कि हम आपकी ही तरह एक आम इंसान है। हम सिर्फ अपना काम कर रहे हैं।