टाइप-ए के लोगों को ज्यादा खतरा स्वास्थ्य विभाग के रिटायर्ड डायरेक्टर डॉ. केके टस्सू ने बताया कि जो लोग अपने हर काम को जल्दी-जल्दी करना चाहते हैं, उन्हें टाइप-ए कैटेगरी में रखा जाता है। इस बीमारी में दिमाग शरीर के अन्य अंगों को संकेत भेजता तो है, लेकिन अन्य अंग उसे रिसिव नहीं कर पाते। एक तरह से उनका ब्रेन से संपर्क टूट जाता है। ऐसे में व्यक्ति की स्थित लकवे जैसी हो जाती है। कभी उसे दिखाई कम देता है तो कभी हाथ-पैर काम नहीं करते, शरीर में जकडऩ आ जाती है। ऐलोपैथी में अभी तक इसका कोई इलाज नहीं है। इसके होने के कारणों का भी अभी तक पता नहीं चला पाया। पूरी जिंदगी के लिए आदमी लाचार हो जाता है। डॉ. लता ने बताया कि लाइफ स्टाइल में बदलाव कर इससे बचा जा सकता है। योग, मेडिटेशन, प्राणायम से पीडि़त व्यक्ति को काफी हद तक रिलिफ मिलता है। मैंने लोगों को इस बीमारी के प्रति अवेयर करने के लिए यह बुक लिखी है। कार्यक्रम का संचालन शैलेन्द्र ओझा तथा आभार प्रदर्शन जीके छिब्बर ने किया।