एक-दो माह में मध्यप्रदेश की धरती पर चीतों की चहल-कदमी नजर आएगी। प्रदेश के बड़े अफसरों की एक टीम इन दिनों दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया में है। माना जा रहा है कि मार्च से लेकर अप्रैल तक यह चीते मध्यप्रदेश के कूनो पार्क में लाए जाएंगे। यह पार्क चीतों के लिए सबसे अनुकूल है।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) जसवीर सिंह के नेतृत्व में अधिकारियों का एक दल 17 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के दौरे पर है। अधिकारियों का यह दल चीतों को भारत लाने के लिए वहां की सरकार के साथ चर्चा कर रहा है। 25 फरवरी को यह दल भारत लौट आएगा।
तीन वर्षों से चल रहा इंतजार
अफ्रीकन चीतों को मध्यप्रदेश लाने के लिए तीन साल से प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी को इसकी मंजूरी दी थी, प्रयोग के लिए अफ्रीकन चीते भारत के जंगलों में लाए जाएंगे।
2021 में फिर टल गया था मामला
इससे पहले मध्यप्रदेश सरकार 2021 में स्थापना दिवस 1 नवंबर के मौके पर इन चीतों को कूनो नेशनल पार्क में लाना चाहती थी, लेकिन केंद्र सरकार से तारीख नहीं मिल पाने की वजह से यह मामला फिर फाइलों में अटक कर रह गया था।
20 चीते लाने का प्लान
कूनो नेशनल पार्क में फिलहाल 20 चीतों को लाने का प्लान तैयार है। पिछले साल अगस्त में केंद्रीय विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने चीतों को भारत लाने की तैयारी को लेकर पर्यावरण मंत्रालय से चर्चा की थी। दो चरणों में 10 नर और 10 मादा चीते को लाने का प्लान है। इससे पहले वन्य जीवों के ट्रस्ट (इडब्ल्यूटी) की ओर से 8 चीतों को देने का फैसला हुआ था, जिनमें पांच नर चीता और तीन माता शामिल थे।
चीतों का अच्छा आवास है कूनो नेशनल पार्क
मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में इन चीतों को लाने का प्लान इसलिए भी तैयार हुआ है कि यह चीतों के लिए सबसे अच्छा आवास है। चीतों के लिए यहां आदर्श घास का मैदान और शिकार का पर्याप्त आधार है। इससे पहले मध्यप्रदेश के साथ ही झारखंड और राजस्थान में भी चीता को बसाने की संभावनाएं तलाशी गई थी, लेकिन कूनो ही सबसे अच्छी जगह मानी गई थी। वैज्ञानिकों ने भी कूनो अभ्यारण की जलवायु और भौगोलिक स्थिति के लिए सबसे अनुकूल पाया था।
अगले एक-दो माह में यदि चीता मध्यप्रदेश लाया जाता है तो यह 73 वर्षों बाद नजर आएगा। वर्ष 1947 में ली गई सरगुजा महाराज रामानुशरण सिंह के साथ चीते की तस्वीर को अंतिम मान लिया गया था। 1952 में भारत सरकार ने चीतों को विलुप्थ जीव घोषित कर दिया था। गुजरात के गिर अभ्यारण्य से बब्बर शेर न मिलने पर भारत सरकार ने 2010 में कूनो में चीता बसाने की योजना बनाई थी।

चीताः एक नजर
- चीता शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द चित्रकायः से हुई है।
- एक छलांग में 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार।
- इसी स्पीड से 460 मीटर तक लगातार दौड़ने की क्षमता।
- तीन सेकंड में ही 103 की रफ्तार पकड़ लेता है।
- 23 फीट लंबी तक की छलांग लगाने में माहिर।