इस दौरान युवा कवि स्वर्णा तिवारी ने कुछ पक्तियां सुनाई – कट जाती है रात यूँ ही
बीती सुबह की यादों में
और हो आता है नया सवेरा
कैद नई यादें करने। वक्त भी है यायावर कोई
कुछ लम्हे ठहरता ही नहीं
कि हाथ आए तो रोक लूँ एक पल
मुसाफ़िर अपनी मस्ती का रुकता ही नहीं।
बीती सुबह की यादों में
और हो आता है नया सवेरा
कैद नई यादें करने। वक्त भी है यायावर कोई
कुछ लम्हे ठहरता ही नहीं
कि हाथ आए तो रोक लूँ एक पल
मुसाफ़िर अपनी मस्ती का रुकता ही नहीं।
क़ब्र में पैर लटकाए
भागती उम्र की रस्सी थामे
फिर हो आती है ज़िद्द जीने की
इस बच्चे मन को कौन समझाए । गिनी चुनी उधार की साँसें हैं
किसी कर्मचारी सी जिंदगी है
उम्र की तय तनख्वाह है और
ख़्वाबों की लंबी फ़ेहरिस्त है ।
भागती उम्र की रस्सी थामे
फिर हो आती है ज़िद्द जीने की
इस बच्चे मन को कौन समझाए । गिनी चुनी उधार की साँसें हैं
किसी कर्मचारी सी जिंदगी है
उम्र की तय तनख्वाह है और
ख़्वाबों की लंबी फ़ेहरिस्त है ।
ख़ुशी इस बात की
हर इच्छा पूरी कर ली
आ ही गया वक़्त रवानगी का
तब याद आई खाता-बही काम की। चार लफ्ज़ों का तो इंसान था
चार कंधों पर चढ़ा हुआ
चार दिन लेकर आया था
चार पल का गुज़रा हुआ।
हर इच्छा पूरी कर ली
आ ही गया वक़्त रवानगी का
तब याद आई खाता-बही काम की। चार लफ्ज़ों का तो इंसान था
चार कंधों पर चढ़ा हुआ
चार दिन लेकर आया था
चार पल का गुज़रा हुआ।