कभी-कभी तो मुझे लगता है कि क्या यहीं मेरे असली मम्मी पापा हैं या फिर मुझे कहीं और से उठाकर ले आए हैं। यह बात बच्चे ने चाइल्ड लाइन हेल्प लाइन नंबर पर बताई। चाइल्ड लाइन डायरेक्टर अर्चना सहाय ने बताया कि इस तरह की शिकायत मिलने के बाद बच्चे की काउंसलिंग की जाती है।
वहीं संभव हो सके तो माता-पिता को सेंटर बुलाकर समझाया जाता है। केस-१ एक अन्य शिकायत में सात वर्षीय बच्ची ने बताया कि उसके मम्मी-पापा दोनों वर्र्किंग हैं। वह सुबह १० बजे से रात ८ बजे तक दरवाजे को इसी आस से देखती है कि, दोनों में कोई कभी जल्दी घर आ जाए तो वह उसके साथ थोड़ा वक्त बात करें और खेले।
लेकिन मम्मी-पापा ऑफिस से आने के बाद यह भी उससे नहीं पूछते कि उसने दिनभर क्या किया और कंप्यूटर पर तो कभी मोबाइल में बिजी रहते हैं। केस- २ एक अन्य शिकायत में आठ वर्षीय बच्ची ने बताया उसके पिता का ट्रांसफर किसी अन्य शहर में हो गया। तब से उसकी मम्मी ने कभी भी उससे बात करने का समय नहीं निकाला।
जब पापा घर रहते थे तो उसकी मम्मी खाने का पूछ भी लेती थी, लेकिन अब तो न जाने मम्मी किस से फेसबुक, वॉट्सअप और फोन पर बात करती रहती है। गर्मी की छुट्टियां जब से लगी है तक से अभी तक उसकी मम्मी ने उससे बात भी नहीं की। केस- ३ एक अन्य शिकायत में दस वर्षीय बच्चे ने बताया कि जब वह सोकर उठता है तो उसके मम्मी-पापा ऑफिस निकल जाते हैं और आने के बाद उन्हें दो मिनिट बात करने की फुरसत तक नहीं रहती। अब तो स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि सुबह के नाश्ते से लेकर रात का खाना तक वह स्वयं गरम करता है और अकेला खाता है।
बच्चों की बढ़ती उम्र के अनुसार उनकी अपेक्षाएं और आशाएं बढ़ती जाती है। यदि स्कूल में आयोजित होने वाली पैरेंट्स मीटिंग में किसी बच्चे के माता-पिता नहीं आते हैं तो उसके मन में कई सवाल खड़े हो जाते हैं। माता-पिता खास तौर से जिनमें दोनों वर्किंग हो उन्हें अपने बच्चों के लिए रोजाना कम से कम एक घंटा जरूर निकालना चाहिए। जिसमें बच्चा अपने मन की बात उनको बता सकें। वहीं सप्ताह में एेसा एक दिन होना चाहिए जब माता-पिता का पूरा समय बच्चे के लिए हो। – डॉ. विनय मिश्रा, मनोवैज्ञानिक