इस खेल में हरेक खाने पर कुछ सन्देश होते हैं और बच्चे इन खानों में लिखे संदेशों को पढ़ते हैं और फिर उस पर चर्चा होती है। यहां 99 पर लिखा संदेश कुछ ऐसा था ‘बच्चों पर लैंगिक अत्याचार, पॉक्सो कानून बन रहा हथियार’ यानी बच्चों के साथ यदि किसी भी तरह का लैंगिक अत्याचार होता है तो फिर यह कानूनन अपराध है और पीडि़त बच्चा पाक्सो कानून को हथियार की तरह उपयोग कर सकता है। ज्ञात हो कि बच्चों के लैंगिक शोषण के प्रकरण भोपाल में आम हैं।
बच्चों के साथ इस खेल को खेलते हुए गौरव महासे, प्रतीक और रितु रुसिया हरेक संदेश का अर्थ बताते हैं, इसके बाद ही बच्चे आगे बढ़ते हैं। ये खेल-खेल में संदेश देते हैं। इस खेल में ऐसे ही कुछ और संदेश छिपे हैं। कुछ सीढ़ी पर हैं तो कुछ सांप के रूप में।
सांप के मुंह पर वो संदेश लिखे हैं, जो बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से बहुत जरूरी कानूनी प्रावधान हैं और यह बच्चों व वयस्कों को कई बार मालूम नहीं होते हैं। जैसे एक संदेश लिखा है कि ‘बच्चों को जो नशा है बेचे, सात साल वो जेल के पीछे’।
इसी प्रकार सीढ़ी पर उन जरूरी सेवाओं के संदेश लिखे हैं, जिन्हें कि बच्चे खेलते हुए उनको मिलने वाली सेवाएं या उनके अधिकारों के विषय में जान सकें। जैसे कि ‘आइसीपीस योजना आई, बच्चों के लिए खुशहाली लाई’ इसी प्रकार एक संदेश और है, जन्म पंजीकरण जरूर कराएं, बच्चे को पहचान दिलाएं।
बाल सुरक्षा के प्रति कर रहेे जागरूक
बच्चों और वयस्कों को इसी तरह के रोचक संदेशों के माध्यम से बाल सुरक्षा के प्रति जागरूक करने का काम सशक्त समाज, सुरक्षित शहर कार्यक्रम के तहत किया जा रहा है। बच्चे और बड़े दोनों ही इस तरह के खेलों को बहुत चाव से खेल रहे हैं।
बच्चों को यह उनका खेल लगता है तो बड़ों को बचपन के दिन याद दिलाते हैं। अभियान के विषय में आवाज संस्था के प्रशांत दुबे ने बताया कि यह बच्चों के लिए सुरक्षित शहर के सपने को पूरा करने की दिशा में एक प्रयास है। उन्होंने कहा कि हम अभी तक एक ढर्रे में ही संदेश देते आ रहे हैं और उसमें रचनात्मकता न होने के कारण वह कभी आकर्षण नहीं बन पाते हैं।