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97 करोड़ का दावा हारी सरकार, रिटायर वन अफसर पर ठोका था जुर्माना

locationभोपालPublished: Feb 26, 2019 09:11:44 am

– रिटायर्ड आइएफस ने वनभूमि पर कब्जे का आरोप लगाया तो भाजपा सरकार का फूटा था गुस्सा- औद्योगिक निवेश को प्रभावित करने का अफसर पर लगा था आरोप

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भोपाल। तामोट प्लास्टिक पार्क के नाम पर वन भूमि पर किए जा रहे कब्जे को लेकर रिटायर आईएफएस अफसर जेपी शर्मा ने आवाज उठाई तो पिछली भाजपा सरकार ने उन पर सरकारी काम-काज में बाधा डालने के नाम पर ९७ करोड़ का दावा ठोका, लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद शर्मा को कोर्ट ने राहत दी है। मामला रायसेन जिले में रातापानी अभ्यारण्य के समीप वन भूमि को राजस्व भूमि बताकर तामोट प्लास्टिक पार्क में उद्योगों को जमीन आवंटित किए जाने से जुड़ा है।
तत्कालीन भाजपा सरकार रायसेन जिले में प्लास्टिक पार्क स्थापित करना चाहती थी। इसके लिए कागजी कार्रवाई श्ुारू हुई। ६९.३४५ हेक्टअर भूमि का चयन किया गया। सरकार इसे राजस्व भूमि माना जबकि वन विभाग का तर्क था कि यह वन भूमि है। संरक्षित वनभूमि पर उद्योग स्थापित नहीं हो सकते। इसको लेकर वन विभाग और उद्योग विभाग में विवाद रहा। कलेक्टर ने वन विभाग के आपत्ति को खारिज करते हुए यहां काम शुरू करा दिया।
तत्कालीन सरकार ने यहां प्लास्टिक पार्क का उद्घाटन करना चाहा लेकिन तत्कालीन प्रधान अपर मुख्य वन संरक्षक जेपी शर्मा ने पद पर रहते हुए ऐसा नहीं होने दिया। वे अड़े रहे कि वन भूमि पर उद्योग स्थापित नहीं होने देंगे। मई २०१५ को इनकी सेवानिवृत्ति के बाद भाजपा सरकार में इस पलास्टिक पार्क का उद्घाटन कराया गया। यही नहीं एकेवीएन ने शर्मा पर ९७ करोड़ रुपए का दावा ठोक दिया। तर्क दिया गया इन्होंने प्लास्टिक पार्क स्थापित होने में बाधा पहुंचाई, इससे निवेश प्रभावित हुआ।
यह कहा कोर्ट ने –

रायसेन जिला न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि सरकार में जिम्मेदार पद पर रहते हुए अफसर ने अपना काम ईमानदारी से किया। वनभूमि को राजस्व भूमि बताकर उद्योगों को आवंटित करने पर आपत्ति उनके कत्र्तव्य का हिस्सा है। अफसर पर लगाए गए आरोप अटकलबाजी पर आधारित हैं। कोर्ट ने इस बात की सराहना की कि सेवा में रहते हुए अफसर ने न सिर्फ जंगल बचाने का प्रयास किया बल्कि सेवानिवृत्ति के बाद भी ग्रीन ट्रिव्युनल में अपील की।

यह है मामला –

रायसेन जिले में रातापानी अभ्यारण्य के समीप गांव तामोट में स्थित पुराना खसरा क्रमांक ५९७ (नया क्रमांक ७२६) की भूमि सन् १९१६ से आरक्षित वन है। इस आरक्षित वनभूमि को राजस्व भूमि बताकर इसमें ९६.३४५ हेक्टेअर भूमि कलेक्टर रायसेन ने २००८ में उद्योग विभाग को उद्योग स्थापित करने के लिए आवंटित कर दी। उद्योग विभाग ने यह भूमि औद्योगिक केन्द्र विकास निगम (एकेवीएन) को दे दी। वनभूमि को राजस्व भूमि बताकर आवंटित किए जाने पर वन विभाग ने आपत्ति ली। आपत्ति को दरकिनार करते हुए औद्योगिक केन्द्र विकास निगम ने यहां तामोट प्लास्टिक पार्क विकसति कर दिया। उद्योगों के लिए यह भूमि अन्य लोगों को आवंटित करना शुरू कर दी। तत्कालीन प्रधान अपर मुख्य वन संरक्षक जेपी शर्मा इसको लेकर आपत्ति की।
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वर्जन –
प्लास्टिक पार्क के लिए वन भूमि कब्जा होने से मैंने रोकने का प्रयास किया। आश्चर्य यह भी है कि वन विभाग की आपत्ति को जिला कलेक्टर से लेकर राज्य सरकार तक लगातार खारिज किया गया। यही नहीं जिस वन भूमि को राजस्व की भूमि बताकर कब्जा किया, उससे अधिक भूमि पर सरकार ने ही अतिक्रमण कर उद्योगों को आवंटित कर दी। सेवा में रहते हुए मैंने प्लास्टिक पार्क का उद्घाटन नहीं होने दिया। मेरे रिटायरमेंट के बाद पार्क का उद्घाटन हुआ और सरकार ने ९७ करोड़ का दावा ठोकते हुए झूठा केस लगा दिया था।
– जेपी शर्मा, तत्कालीन प्रधान अपर मुख्य वन संरक्षक जेपी

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