बुधवार को इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ डॉक्टर, सामाजिक संगठनों के साथ अन्य संस्थाओं के विशेषज्ञों ने इस एक्ट को लागू करने पर चर्चा भी की। हालांकि नर्सिंग होम एसोसिएशन के चिकित्सकों ने इस एक्ट के प्रावधानों पर कड़ी आपत्ति जताई।
दरअसल, इस एक्ट के लागू होने के बाद खासकर प्राइवेट अस्पतालों की कमाई पर सीधा असर पड़ेगा। क्योंकि इस कानून में मरीज को कॉलेज में पारदर्शिता लाने के लिए तमाम नियम हैं, जिससे कोई भी चिकित्सक या अस्पताल मरीज से मनमाने पैसे नहीं ले सकता। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इस एक्ट के लागू होने से डॉक्टरों को नुकसान नहीं होगा, लेकिन मरीजों को ज्यादा फायदा होगा।
केंद्र सरकार द्वारा क्लीनिकल एस्टेबलिशमेंट एक्ट पारित किया गया था। स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता व बेहतरी के उद्देश्य से पारित इस एक्ट को लागू करना राज्य सरकारों के लिए भी बाध्यकारी है। यह दीगर बात है कि मप्र सरकार इस महत्वपूर्ण एक्ट को राज्य में लागू नहीं कर पाई।
इसलिए हो रहा है विरोध
दरअसल, इस एक्ट में कई ऐसे प्रावधान हैं, जिनसे निजी अस्पतालों, डॉक्टरों व नर्सिग होम की मनमानी पर अंकुश लगेगा। वहीं आम जनता के लिए स्वास्थ्य सेवाएं और ज्यादा सुलभ और सस्ती हो जाएंगी। सभी अस्पतालों, क्लीनिक, नर्सिंग होम और डॉक्टरों के साथ स्वास्थ्य से जुड़ी सभी संस्थाओं को इस एक्ट के तहत पंजीकरण कराना होगा। चिकित्सा उपचार संबंधी हर सेवा का शुल्क भी अस्पतालों की श्रेणीवार निर्धारित हो जाएगा।
कब आया था कानून
साल 2010 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने क्लीनिकल स्टेब्लिशमेंट नाम का एक कानून पारित किया था। इस कानून के माध्यम से हर प्राइवेट अस्पताल, डायग्नोस्टिक सेंटर, नर्सिंग होम्स, क्लीनिक्स की जवाबदेही तय थी। जिसमें ये सुनिश्चित करना था कि वह एक्ट से जुड़े मापदंडों का पालन कर रहें हैं या नहीं। ऐसा न करने पर अस्पतालों पर जुर्माने का प्रावधान था।