भाजपा ने इस बार यहां से मालेगांव ब्लास्ट से चर्चा में आईं साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को अपना प्रत्याशी बनाया है। वहीं इससे पहले ही कांग्रेस ने इस सीट को घेरते हुए वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को यहां से मैदान में उतारा है।
जानकारों की माने तो भाजपा का गढ़ रही इस भोपाल सीट से दिग्विजय सिंह का उतरना ही चुनाव को दिलचस्प बनाने के लिए काफी था, लेकिन अब भाजपा की ओर से भी प्रज्ञा ठाकुर को यहां से उतारे जाने से चुनाव और ज्यादा दिलचस्प होता दिख रहा है।
राजनीति के जानकार डीके शर्मा की माने तो यदि भाजपा यहां से किसी पुराने कद्दावर नेता को उतारती तो ये सीट काफी हद तक भाजपा की झोली में जाने का अनुमान लगाया जा सकता था, लेकिन साध्वी के मैदान में उतरने से अब ये उंट किस करवट बैठेगा कहा नहीं जा सकता, लेकिन इतना तो तय है कि यदि सामने दिग्विजय सिंह ही रहे तो चुनाव बेहद दिलचस्प रहेगा।
शर्मा के मुताबिक ऐसा लगता है कि भाजपा ने जानबुझकर अपनी रणनीति के तहत सीट को लंबे समय तक अटकाया रखा। उनके अनुसार इस चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा की चाल चलते हुए उन्हें घेरने के लिए उनके इस गढ़ से दिग्विजय को पहले ही टिकट दे दिया ताकि यहां से जो भी बड़ा नेता उतारा जाए, वह यहीं बंधकर रह जाए।
लेकिन इस रणनीति की काट के तहत पहले भाजपा कई नेताओं का नाम चलाती रही, और फिर आखिरी समय पर उसने यहां से साध्वी को उतार दिया। ऐसे में चुनाव का ज्यादा समय नहीं बच पाने के कारण जहां ऐसा लगता है कि एक ओर दिग्विजय साध्वी पर आरोप लगाने से ज्यादा अपने को मजबूत करने पर ध्यान देंगे।
वहीं साध्वी इस थोड़े से समय में ही केवल दिग्विजय को घेरने का ही काम करेंगी। ताकि भाजपा का रेगुलर वोटर तो उन्हें वोट दे ही साथ ही, जो इस बार कांग्रेस की ओर मुड़ रहे हैं वे भी ये सोचने को मजबूर हो जाएं कि वे या तो साध्वी को वोट दे या कहीं ओर लेकिन दिग्विजय सिंह को न दें।
वहीं कुछ जानकारों का ये भी मानना है कि अब तक भोपाल से भाजपा या कांग्रेस के किसी भी प्रत्याशी ने नामांकन नहीं किया है, ऐसे में हो सकता है यदि भोपाल में कांग्रेस कमजोर दिखी तो कांग्रेस अचानक चाल चलते हुए दिग्विजय को कहीं ओर से नामांकन भरवा दे।
वहीं शर्मा का कहना है कि लोकसभा चुनाव के लिहाज से भोपाल सीट हमेशा से ही अहम रही है। इस बार यहां से कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा है तो वहीं भाजपा ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर दांव लगाया है। ऐसे में ये तो लगभग साफ दिख रहा है कि प्रज्ञा के चुनाव लड़ने से मुकाबला टक्कर का होना वाला है।
वहीं क्या आप जानते हैं कि इससे पहले भोपाल सीट पर आखिरी बार कांग्रेस के केएन प्रधान 1984 में लोकसभा चुनाव जीते थे। जिसके बाद से अब तक यहां भाजपा का कब्जा है यानि तब से अब तक कांग्रेस का कोई भी उम्मीदवार यहां से चुनाव नहीं जीत पाया है।
जानिये भोपाल पर कब किसका रहा कब्जा…
भोपाल सीट: वर्ष 2014 –
2014 के लोकसभा चुनाव में भोपाल सीट पर भाजपा के उम्मीदवार अलोक संजर करीब चार लाख वोटों से चुनाव जीते थे। उन्हें 36 फीसदी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के पीसी शर्मा को 17 फीसदी वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे। वहीं पहली बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार रचना ठींगरा एक फीसदी वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रही थीं।
भोपाल सीट: वर्ष 2009 –
2009 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो इस चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार कैलाश जोशी करीब 50 हजार वोटों से चुनाव जीते थे। उन्हें 22 फीसदी जबकि कांग्रेस उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह ठाकुर को 18 प्रतिशत और इंजीनियर अशोक नारायण सिंह को मात्र एक फीसदी वोट मिला था।
भोपाल सीट: वर्ष 2004 –
2004 का लोकसभा का चुनाव तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में लड़ा गया था। इस चुनाव में भाजपा उम्मीदवार कैलाश जोशी को 30 फसदी वोट मिले और वह करीब ढाई लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे। जबकि कांग्रेस उम्मीदवार साजिद अली को 13 फीसदी और बसपा उम्मीदवार जीएस चावला को एक फीसदी वोट भी नहीं मिला था।
1999 के लोकसभा चुनाव में भोपाल सीट से भाजपा उम्मीदवार उमा भारती को 34 फीसदी वोट मिले थे। उमा, कांग्रेस उम्मीदवार सुरेश पचौरी को करीब डेढ़ लाख वोटों से हराने में कामयब रही थीं। तब पचौरी को 23 फीसदी और निर्दलीय उम्मीदवार श्रवण गौरव को एक फीसदी वोट मिला था।
1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार सुशील चंद्र वर्मा को 33 फीसदी वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस उम्मीदवार आरिफ बेग को 20 जबकि बसपा उम्मीदवार मनोज श्रीवास्तव को मात्र दो फीसदी वोट हासिल हो पाये। इस चुनाव में सुशील ने आरिफ को करीब दो लाख वोटों से हराया था।
1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार सुशील चंद्र वर्मा ने कांग्रेस उम्मीदवार कैलाश अग्निहोत्री कुण्डल को करीब डेढ़ लाख वोटों से हराया था। सुशील को 24 और कैलाश अग्निहोत्री को 13 फीसदी वोट मिले थे।