ये तस्वीरें हैं राजधानी भोपाल की जहां मंत्रालय की बजाए पूरी सरकार, सड़कों पर नजर आई। एनआरसी और सीएए के विरोध में चल रहे हिंसक प्रदर्शन के बीच कांग्रेस ने शांतिपूर्वक पैदल मार्च निकालकर विरोध जताया। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक हर कोई नागरिकता संशोधन कानून और संभावित एनआरसी के विरोध में मार्च में शामिल हुआ।
एक तरफ केन्द्र सरकार तमाम तरह से आमलोगों और विपक्षी दलों को समझाने की कोशिश कर रही है। इस कानून के बारे में समझा रही है, अफवाहों से बचने की अपील कर रही है लेकिन इस मुद्दे में सियासत तलाश रहे दलों को इससे कोई वास्ता नहीं। कभी वो दहशत फैलाते हैं कि इस कानून के जरिए मुस्लिमों को देश से बाहर कर दिया जाएगा। कभी वो पूछते हैं कि हम क्यों अपनी नागरिकता का सबूत दें। कभी विपक्षी दलों की आपत्ति होती है कि ये संविधान के खिलाफ है और इसमें मुस्लिमों को शामिल क्यों नहीं किया जा रहा। तो कभी वो ये सवाल उठाते हैं कि कथित तौर पर जो करोड़ों लोग देश में आ जाएंगे उनके रोजगार और रहने खाने की कौन व्यवस्था करेगा। यानि विपक्ष खुद तय नहीं कर पा रहा है कि उसे विरोध करना किस बात पर है। अब भोपाल में रैली के दौरान एएनआई से बात करते हुए सीएम कमलनाथ ने कहा कि हमें इस बात पर आपत्ति नहीं कि इसमें किसे शामिल किया गया है। जिन्हें शामिल नहीं किया गया हमें तो उस बात पर आपत्ति है।
तो दूसरी तरफ बीजेपी ने प्रदेश सरकार के मार्च पर विरोध दर्ज कराया। पूर्व सीएम शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को चुनौती देते हुए कहा कि पहले उन्हें कुर्सी छोड़नी चाहिए। इसके बाद उन्हें विरोध में शामिल होना चाहिए था।
कुल मिलाकर हालात ये हैं कि कानून के विरोधी और कानून के समर्थक दोनों ही ठोस तर्क पेश करने में जुटे हैं। उसी के साथ राजनीति चमकाने के लिए अफवाह फैलाकर हिंसा भी करवाई जा रही है। अब कमलनाथ का ये कहना कि जिन्हें शामिल नहीं किया गया हमारा विरोध उसके लिए है तो उन्हें समझना चाहिए कि ये तीन देशों में प्रताड़ित गैर मुस्लिम लोगों के लिए कानून है। न कि 50 से ज्यादा देशों में बसने वाले मुस्लिमों के लिए, खैर विरोध का अधिकार सबको है और लोकतंत्र में इसकी छूट भी है लेकिन अच्छा होता कि केवल आशंकाओं के आधार पर अफवाह फैलाकर हिंसा करने और करवाने की बजाय चर्चा के जरिए शंकाओं को दूर करने की कोशिश होती।