एमपी ने जिस बेंगलूरू में मुंबई को मात दी उसी मैदान पर पंडित बहुत नजदीकी अंतर से मैच गंवा बैठे थे. अब बेंगलुरू के उसी चिन्नास्वामी स्टेडियम में कोच के रूप में चंद्रकांत पंडित ने इतिहास रच दिया और उनकी एमपी टीम के रणबांकुरों ने 41 बार की चैंपियन मुंबई को करारी शिकस्त देकर पहली बार रणजी ट्राफी अपने नाम कर ली।
मीडिया से बातचीत में भी चंद्रकांत पंडित ने टीम के कप्तान के साथ पूरी युवा टीम के खेल को सराहा. उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि मैंने 23 साल पहले यह मैदान छोड़ा था लेकिन ईश्वर के आशीर्वाद से हमने यहीं पर वापसी की। पंडित ने दोहराया कि वे मध्यप्रदेश में क्रिकेट को अभी और पल्लवित करना चाहते हैं। खास बात यह है कि कोच के रूप में वे मुंबई को भी राष्ट्रीय क्रिकेट चैंपियन बना चुके हैं. वे विदर्भ के भी कोच रहे।
रणजी फाइनल में मुंबई के खिलाफ मैच में मध्यप्रदेश ने दूसरे दिन ही अपनी स्थिति खासी मजबूत कर ली थी लेकिन कोच चंद्रकांत पंडित बेहद शांत बने रहे। रविवार को रणजी फाइनल के अंतिम दिन का खेल शुरु होने से लेकर अंतिम गेंद डाले जाने तक उनकी ये खामोशी बरकरार रही. वे चुपचाप अपने खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर नजर रख रहे थे और उन्हें आवश्यक मार्गदर्शन दे रहे थे। मध्यप्रदेश के रणजी ट्राफी चैंपियन बनने से पंडित के साथ ही प्रदेश के पूर्व अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटर स्वर्गीय कैप्टन मुश्ताक अली का सपना भी साकार हो गया. वे हमेशा मध्यप्रदेश टीम के रणजी ट्राफी जीतने की बात कहा करते थे।