बस यही आस लिए हम झाबुआ से भोपाल आए हैं। हमें कहा गया था, सुबह जल्दी पहुंचोगे तो बेटा जल्दी मिल जाएगा, नहीं तो रात हो जाएगी। हम खेती-किसानी करने वाले लोग हैं। पहली बार भोपाल आए हैं। बेटे को जल्दी घर ले जाने के लिए सुबह 10 बजे ही बालिका गृह पहुंच गए।
दोपहर के तीन बज गए, पर बच्चे की कोई जानकारी नहीं दे रहा है। बालिका गृह के कर्मचारियों ने कह दिया कि गेट के बाहर बैठो। यह कहना था बच्चे के चाचा राकेश बापू का, जो भाई के बेटे को लेने आए।
उन्होंने बताया कि बड़े भाई 10 साल पहले गुजर गए हैं। उन्होंने ही बेटे का पालन-पोषण किया। वह मानसिक कमजोर है। जल्द कोई बात समझ नहीं पाता। करीब 10 घंटे के सफर के बाद नेहरू नगर पहुंचे।
बच्चे की एक झलक पाने के लिए तरस रहे हैं। न तो बालिका गृह के कर्मचारी कुछ बता रहे हैं और न ही परिसर के अंदर बैठने दे रहे हैं, जिससे सडक़ पर बैठकर समिति की बैठक शुरू होने का इंतजार करना पड़ रहा है।
कलेक्टर के साथ मीटिंग थी इस कारण बैठक समय पर शुरू नहीं हो पाई है। सत्येंद्र जाटव, सदस्य, बाल कल्याण समिति