ये तो सभी जानते हैं कि राजनीति में सक्रियता के दौरान संजय गांधी काफी तेज तर्रार और कठोर फैसलों के लिए चर्चा में रहते थे, लेकिन ये कम ही लोग जानते हैं कि उस वक्त उनकी परछाईं बनकर चलने वाले कमलनाथ ही थे। इमरजेन्सी के बाद और 1980 में संजय गांधी के निधन के बीच के समय में कमलनाथ अपने काम करने के तरीके से गांधी परिवार का अटूट हिस्सा बन चुके थे। खुद कमलनाथ कहते हैं कि वे गांधी परिवार के तीसरे बेटे हैं। राजीव गांधी राजनीति में सक्रिय नहीं थे और कांग्रेस इ का जिम्मा इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने लिया हुआ था, लिहाजा दोनों के ही मन में यह बात बैठ चुकी थी कि कमलनाथ को न तो राजनीति से मतलब है, न धन दौलत से और न ही उनकी कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा है।
अब बात करेंगे इस बारे में आखिर कमलनाथ को छिंदवाड़ा से इतना प्रेम क्यों है। इस बात का जवाब कमलनाथ के इस बयान में छिपा है, जिसमें वे कहते हैं कि वे इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे के समान हैं। इमरजेन्सी के ठीक बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को खासा नुकसान हुआ। 25 जून, 1975 से लेकर 21 मार्च, 1977 तक भारत में इमरजेंसी लगी रही। इसी दौरान 23 जनवरी, 1977 को इंदिरा गांधी ने अचानक से ऐलान कर दिया कि देश में चुनाव होंगे। 16 से 19 मार्च तक चुनाव हुए। 20 मार्च से काउंटिंग शुरू हुई और 22 मार्च तक लगभग सारे रिजल्ट आ गए। 1977 के चुनाव में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार समेत पूरा उत्तर भारत इंदिरा गांधी के खिलाफ था, लिहाजा जब नतीजे आए तो कांग्रेस को बुरी तरह हार मिली। कांग्रेस गठबंधन को मात्र 153 सीटें मिलीं, जबकि एकजुट हो चुके विपक्ष को 295 सीटें मिलीं थीं।
आलम ये था कि 1971 के चुनाव में अपने प्रतिद्वंदी समाजवादी नेता राजनारायण को धूल चटाने वालीं इंदिरा गांधी अपनी परम्परागत सीट रायबरेली से बुरी तरह हारीं। लेकिन फिर भी इस निराशा के दौर में समूचे उत्तर और मध्यभारत में कांग्रेस हैरतअंगेज ढंग से दो सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। एक थी राजस्थान की नागौर और दूसरी मध्यप्रदेश की छिंदवाड़ा संसदीय सीट। नागौर से नाथूराम मिर्धा और छिंदवाड़ा से गार्गीशंकर मिश्रा ने जीत हासिल की थी।
कांग्रेस की करारी हार, पार्टी के खिलाफ लोगों का आक्रोश, संजय गांधी की असमय मौत और इंदिरा गांधी की बढ़ती उम्र, ये तमाम बातें थीं, जिनकी वजह से कांग्रेस कमज़ोर पड़ती जा रही थी। इस दौर में कमलनाथ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए न सिर्फ पार्टी को मजबूती दी, बल्कि विश्वास खोती जा रही पार्टी के लिए लोगों में उम्मीद जगाई। कमलनाथ पहले ही ये बात गांधी परिवार को स्पष्ट कर चुके थे कि उन्हें किसी चीज की लालसा नहीं है, लिहाजा इंदिरा गांधी ने भी कमलनाथ की मेहनत को पुरुस्कृत करते हुए उन्हें अगले चुनाव में छिंदवाड़ा सीट से राजनीति के मैदान में उतार दिया।
इसके बाद 1980 के चुनाव में कमलनाथ छिंदवाड़ा सीट से चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे और तब से भले ही केन्द्र में सरकार किसी भी पार्टी की रही हो, सिर्फ एक बार को छोड़कर, छिंदवाड़ा कमलनाथ का ही रहा और कमलनाथ छिंदवाड़ा के।
2014 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ छिंदवाड़ा से जीत दर्ज करके 9वीं बार लोकसभा चुनाव में जीतने वाले सांसद बन गए हैं और 16वीं लोकस नाथ ?ें नाथ सबसे अधिक बार चुनकर आने वाले सदस्य हैं। 15वीं लोकसभा में माकपा के वासुदेव आचार्य और कांग्रेस के मणिक राव होदिया के नाम सर्वाधिक 9 बार सांसद चुने जाने का रिकॉर्ड था। 2014 में वासुदेव आचार्य और मणिक राव होदिया क्रमश: पश्चिम बंगाल की बांकुड़ा सीट से और महाराष्ट्र की नंदरबार सीट से चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन वे चुनावी जीत दर्ज नहीं कर पाए। भारत के चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक वासुदेव आचार्य और मणिक राव होदिया 7वीं से 15वीं लोकसभा तक 9 बार सांसद निर्वाचित हुए।
कमलनाथ इससे पहले 8 बार सांसद चुने गए थे और 2014 उनकी 9वीं बार लोकसभा जीत है। 11वीं लोकसभा को छोड़कर नाथ 7वीं, 8वीं, 9वीं, 10वीं, 12वीं, 13वीं, 14वीं और 15वीं लोकसभा के सदस्य रहे। 16वीं लोकसभा के चुनाव में कमलनाथ ने मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से 1,16,576 मतों से जीत दर्ज की थी। कमलनाथ के बाद 8 बार चुनाव जीतने वालों में सुमित्रा महाजन, करिया मुंडा, शिबू सोरेन, अर्जुन चरण सेठी शामिल हैं।
कहा तो यहां तक जाता है कि छिंदवाड़ा में कमलनाथ सरकार और पार्टी से कहीं ऊपर हैं। इस बेहद पिछड़े क्षेत्र में बीते सालों में जितना विकास हुआ है, उतना शायद किसी भी जिले में नहीं हुआ होगा। कांग्रेस की सरकार में कमलनाथ जिस किसी भी मंत्रालय में रहे हों, उनकी कोई न कोई सौगात छिंदवाड़ा तक जरूर पहुंची है। यह कभी देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में शुमार होता था, मगर अब इससे होकर तीन राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरते हैं और वहां से दिल्ली के लिए सीधी रेल सेवा है।
कहा जाता है कि यदि कमलनाथ चाहते तो उन्हें पार्टी के केन्द्र और राज्य में शीर्ष नेतृत्व को सम्भालने का जिम्मा मिल भी सकता था, लेकिन शायद किसी की दी हुई सौगात है, जो कमलनाथ आज भी उसे सहेज कर रखे हुए हैं। कमलनाथ के क्षेत्र में दोनों तरह के लोग आपको मिल जाएंगे, एक वो जिन्हें कमलनाथ पसंद नहीं, लेकिन उन आवाज़ों का ज़ोर कहीं ज्यादा है जो कमलनाथ के जयकारे लगाते हैं।