एक ओर जहां भाजपा अब तक भोपाल, विदिशा, इंदौर जैसे अपने मजबूत किलों के प्रत्याशियों की घोषणा नहीं कर सकी है। वहीं कांग्रेस मे भी अब तक ग्वालियर, गुना और इंदौर जैसी सीटों को लेकर पेंच फंसा हुआ है।
इससे पहले कांग्रेस मध्य प्रदेश की 22 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर चुकी है, लेकिन ग्वालियर, गुना-शिवपुरी और इंदौर सीट के संबंध में माना जा रहा है कि यहां देरी सिंधिया कारण हो रही है। वहीं इस देरी के कारण सिंधिया के दूसरे क्षेत्र से चुनाव लड़ने की चर्चा को भी हवा मिल रही है।
वहीं इसके बाद शनिवार को जारी कांग्रेस की लिस्ट में अशोक सिंह का नाम आ गया है।
भले ही सिंधिया गुना सीट पर लगातार तैयारी में जुटे हैं और उनकी टीम प्रचार से लेकर बूथ का जिम्मा संभाले हुए है। लेकिन सूत्र कहते हैं कि अभी कुछ भी निश्चित नहीं है क्योंकि कांग्रेस सिंधिया को भी भाजपा के किसी कद्दावर नेता के सामने उतारना चाहती है।
क्या चल रहा है ग्वालियर में…
दूसरी ओर ग्वालियर सीट से बीजेपी के द्वारा महापौर विवेक नारायण शेजवलकर को टिकट दिए जाने के बाद से उनका सामना करने के लिए कांग्रेस के कई दावेदारों ने दिल्ली में डेरा डाल रखा है। चर्चा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर के साथ उनकी सीट का भी फैसला करेंगे।
वहीं कुछ सूत्र ये भी मानते हैं कि ग्वालियर सीट से कांग्रेस की ओर से अशोक सिंह का नाम लगभग तय है। इसका कारण एक तो ग्वालियर में उनके परिवार का अपना खास रुतबा रहा है। दूसरे पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की ग्वालियर से पहली पसंद अशोक सिंह हैं, लेकिन इस नाम पर अब तक सिंधिया की रजामंदी नहीं मिल पाई है।
खुद ग्वालियर में कांग्रेस से जुड़े लोगों की मानें तो अशोक सिंह का नाम तभी कट सकता है यदि यहां से केवल सिंधिया का कोई सदस्य कांग्रेस से चुनाव लड़ें।
ऐसे में कार्यकर्ताओं को भी पूरी आशा है कि ग्वालियर से अशोक सिंह को ही कांग्रेस का टिकट मिलेगा। क्योंकि भले ही कुछ कार्यकर्ता या लोग उन्हें दूसरे गुट का मानते हों, लेकिन माना जाता है पिछले कई चुनावों से लगातार उन्हें कांग्रेस से लोकसभा का टिकट सिंधिया के समर्थन से ही मिलता रहा है।
समझें ग्वालियर का गणित…
दरअसल, बीजेपी ने इस बार केंद्रीय मंत्री और ग्वालियर से वर्तमान सांसद नरेंद्र सिंह तोमर को मुरैना से टिकट दिया है। इसके पीछे का कारण विधानसभा चुनावों के बाद उनका ग्वालियर में विरोध बताया जाता है।
वहीं विधानसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा ने ग्वालियर में अटल जी के भांजे अनूप मिश्रा पर विश्वास जताने की बजाय वर्तमान महापौर विवेक शेजवलकर को टिकट दिया है। शेजवेलकर ग्वालियर में जयभान सिंह पवैया के नजदीकी माने जाते हैं। खास बात यह भी है कि इनके पिता नारायण कृष्ण शेजवलकर जनसंघ और बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे हैं।
ग्वालियर में बदले इन समीकरणों के चलते राजनीति के जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के लिए इस बार ग्वालियर सीट से जीतने की काफी संभावना है। इसलिए कांग्रेस यहां से कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है।
वहीं शेजवलकर का नाम आते ही ग्वालियर के लिए अब कांग्रेस में दावेदारों की संख्या बढ़ गई है, क्योंकि कांग्रेसियों को अब यह लगने लगा है कि वे भाजपा के प्रत्याशी शेजवलकर को आसानी से पटकनी दे सकते हैं, लेकिन ऐसा चुनावी समय में संभव नहीं दिख रहा, क्योंकि शेजलवकर संघ से जुड़े हुए हैं और आरएसएस के दिशा निर्देशन में भाजपा के सभी लोगों को काम करना होगा।
वहीं भाजपा के अंदर उनका कोई खास विरोध भी नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ पुराने नेता जो नरेंद्र सिंह के जाने पर अपने टिकट की आस लगाए बैठे थे, उन्हे लेकर जरूर भितरघात का संदेह बना हुआ है।
कांग्रेस की रेस में ये भी हैं शामिल…
कांग्रेस की तरफ से प्रबल दावेदार के तौर पर अशोक सिंह का नाम लिया जा रहा है, लेकिन इसके पीछे ही ज्ञानेंद्र शर्मा, मोहन सिंह राठोर, देवेंद्र तोमर भी लगे हुए हैं। इसके साथ ही मदन कुशवाह तथा प्रयाग गुर्जर भी दावेदारी के लिए जोर लगाकर दिल्ली में डटे हुए हैं।
सिंधिया के कुछ समर्थक भले ही अशोक सिंह को दूसरे खेमे का मानते हों, लेकिन सिंह हर ग्रुप के साथ सामंजस्य बनाकर चलने वाले रहे हैं। वहीं ज्ञानेन्द्र शर्मा, मोहन सिंह राठोर और देवेन्द्र तोमर पक्के सिंधिया समर्थक माने जाते हैं।
देवेंद्र तोमर प्रदेश सरकार के मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के बड़े भाई हैं, वह पहले मुरैना से दावेदारी कर रहे थे, लेकिन वहां से जैसे ही भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर का नाम फाइनल हुआ, वैसे ही उन्होंने अपनी नजर ग्वालियर पर टिका दी।
बताया जाता है कि ग्वालियर को लेकर जब पेंच फंसा तो मामला अब सिंधिया की हां पर टिक गया है, अब सिंधिया के ऊपर है कि वह किसके नाम पर अपनी सहमति देते हैं।