निकाय और पंचायत चुनाव करीब हैं। किसान न कर्जमाफी पर संतुष्ट है और न फसल के दामों पर। भाजपा भी किसानों को साथ लेकर आंदोलन की तैयारी कर रही है। ऐसे में सरकार ने डैमेज कंट्रोल के लिए तीन स्तरों पर काम शुरू कर दिया है।
आंदोलन से प्रेशर पॉलीटिक्स
किसानों ने आंदोलन कर सरकार पर प्रेशर पॉलीटिक्स का दांव आजमाया। किसान यूनियन ने आंदोलन किया तो राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ ने भी आंदोलन का ऐलान कर दिया। मुख्यमंत्री ने दोनों संगठनों को मना लिया, लेकिन किसान प्रतिनिधियों ने दो टूक कहा कि आंदोलन स्थगित हो रहा है, रद्द नहीं। यानी किसानों की मांगें पूरी नहीं होती हैं तो फिर आंदोलन शुरू हो जाएगा। अब कांग्रेस सरकार दबाव में है कि किसानों को किस प्रकार संतुष्ट करके आंदोलन की जड़ को खत्म किया जाए।
तीन चरणों में ऐसे काम होगा
कांग्रेस ने पहले चरण में मंत्री और विधायकों को कर्जमाफी सहित किसानों के अन्य मुद्दों पर समझाइश देने के लिए कहा है। दूसरे चरण में कृषि विभाग को अलर्ट किया है कि किसानों की फील्ड की समस्याएं तुरंत हल करे। तीसरे चरण में कर्जमाफी को फोकस किया है। अभी करीब 36 लाख किसानों को कर्जमाफी का फायदा और देना है। उस पर भाजपा के कर्जमाफी पर कैंपेन का काउंटर भी कांग्रेस सत्ता और संगठन को करना है।
भाजपा की बड़े आंदोलन की तैयारी
भाजपा ने किसानों को साथ लेकर बड़े आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा ने किसान मोर्चे के प्रतिनिधियों को फील्ड में सक्रिय कर दिया है। पार्टी का फोकस कर्जमाफी पर कांग्रेस सरकार की विफलता है। इसमें कर्जमाफी की पात्रता के बावजूद फायदा न मिलने वाले किसानों को साथ लेकर भाजपा आंदोलन करेगी। भाजपा निकाय और पंचायत चुनाव के लिए बड़ा प्लेटफार्म तैयार करना चाहती है।
किसानों की कर्जमाफी वापस शुरू की जा रही है। किसानों ने आंदोलन वापस ले लिया है। भाजपा ने किसानों को भ्रमित किया था। हमारी सरकार किसानों के हित के लिए हर संभव प्रयास करेगी।
– सचिन यादव, कृषि मंत्री
रेंडम जांच और सख्त कार्रवाई
कृषि विभाग ने सभी कलेक्टरों को आदेश दिए हैं कि किसान को मंडी में फसल बिक्री वाले दिन ही नकद भुगतान नहीं किया जाता है तो प्रतिदिन एक फीसदी ब्याज देना अनिवार्य होगा। यदि पांच दिन तक भुगतान नहीं होता है तो व्यापारी का लाइसेंस रद्द किया जाएगा। इसकी रेंडम जांच की जाएगी। यदि कोई किसान मंडी से बिना भुगतान लिए लौटता मिलता है तो उसे तुरंत भुगतान कराना होगा।
सियासत की धूरी क्यों हैं किसान
सूबे में 74 फीसदी आबादी किसानों की है। इस लिहाज से किसान सबसे बड़ा वर्ग है, जिसे वोटबैंक के लिए राजनीतिक पार्टियां साधती हैं। सूबे की 230 विधानसभा सीटों में से करीब 200 सीटें किसान बाहुल्य हैं। जब जून 2017 में किसान आंदोलन हुआ तो मंदसौर में पुलिस फायरिंग में छह किसानों की मौत हो गई।
इसके बाद से ही किसानों पर लगातार सियासत गर्म रही। नवंबर 2018 में चुनाव आए तो कांग्रेस ने किसान कर्जमाफी के दांव से सत्ता पलट दी। कांग्रेस ने सरकार बनाई, लेकिन मई 2019 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो यह वोटबैंक कांग्रेस से फिसल गया। लोकसभा में सूबे की 29 में से 28 सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमा लिया।