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कांग्रेस ने बनाया गुजरात से भी बड़ा फॉर्मूला, बीजेपी की बढ़ेगी मुश्किल

locationभोपालPublished: Jan 14, 2018 12:35:36 pm

Submitted by:

rishi upadhyay

गुजरात में हार्दिक ने कांग्रेस को समर्थन दिया, कांग्रेस यहां भी उनका सहयोग लेगी। कांग्रेस जिग्नेश और अल्पेश की भी मदद लेने की तैयारी में है।

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भोपाल। मध्यप्रदेश की सियासत में जातियों का असर रहा है। सभी 230 विधानसभा सीटों पर नजर डालें, तो 70 सीटें जातिगत समीकरण से प्रभावित हैं। इनके लिए मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस हार्दिक पटेल , जिग्नेश और अल्पेश को साधने में जुटी है। यह कवायद राज्य में कमजोर हुए बसपा नेतृत्व के जनाधार को अपनी ओर मोडऩे के लिए की जा रही है। कांग्रेस जहां आंदोलन से उठे नेताओं को आकर्षण का केन्द्र बनाना चाहती है, वहीं, भाजपा सामाजिक समरसता का नाम देकर गोलबंदी देना चाहती है।

 

पाटीदार आंदोलन में गुजरात के हार्दिक पटेल का नाम उभरकर सामने आया। अब उन्होंने मध्यप्रदेश पर फोकस किया है। कांग्रेस को उम्मीद है कि हार्दिक के दम पर मध्यप्रदेश के पाटीदार वोट बैंक को साधा जाएगा। गुजरात में हार्दिक ने कांग्रेस को समर्थन दिया, कांग्रेस यहां भी उनका सहयोग लेगी। कांग्रेस जिग्नेश और अल्पेश की भी मदद लेने की तैयारी में है।

 

मध्यप्रदेश में जाति समीकरण पर टिकट तय होते हैं, पदाधिकारी बनते हैं, यहां तक कि सरकार में राजनीतिक नियुक्तियां भी इसी आधार पर होती हैं। मंत्रियों में भी क्षेत्र और जाति का गणित बैठाया जाता रहा है। रीवा, सतना और सीधी जिले में तो जातिगत आधार पर ही चुनाव लड़ा जाता है। इन क्षेत्रों में ब्राह्मण, ठाकुर और पटेल जाति चुनावी समीकरण बनाती-बिगाड़ती हैं।

 

प्रमुख क्षेत्रों की स्थति
सागर विधानसभा सीट में जैन का ही प्रभाव रहा। यहां इसी समाज के लोगों को टिकट मिला और चुनाव जीते। 50 हजार से ज्यादा जैन वोटर हैं।
सतना जिले की विधानसभा सीटों में वैश्य, ब्राह्मण हार-जीत पर अहम भूमिका निभाते हैं। चित्रकूट सीट पर ठाकुरों का प्रभाव है। रीवा का चुनाव ब्राह्मण व पटेलों पर निर्भर रहता है।

 

दलित चेहरे का अभाव
मप्र के प्रमुख दल भाजपा व कांग्रेस में आकर्षक दलित चेहरा नहीं है। क्योंकि, ये कभी दलित आंदोलनों का हिस्सा नहीं होते। दलितों के दम पर ही पिछले दो दशक से बसपा मप्र में तीसरी ताकत बनी हुई है। इससे कई दलित नेतृत्व उभरे, लेकिन बसपा कभी भी यहां निर्णायक बढ़त नहीं ले पाई। अब बसपा की हालत कमजोर होने से दलित मतदाता भाजपा और कांगेस दोनों के लक्ष्य में हैं।

 

अति पिछड़े की कई जातियां सत्ता से बाहर
प्रदेश की राजनीति में अति पिछड़े हमेशा से हाशिए पर रहे हैं। न तो इनकी हैसियत राजनीति में है और न ही प्रशासनिक तंत्र में पकड़। हालांकि, भाजपा और कांग्रेस के लिए आकर्षण पैदा करते हैं, लेकिन उनकी भूमिका वोट देने और योजनाओं का लाभ लेने से अधिक नहीं है।

 

हाशिए पर मालवा के पाटीदार
मध्यप्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में पाटीदारों का दबदबा है, लेकिन राजनीतिक तौर पर उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। जबकि, प्रदेश के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से में पटेलों का दोनों दलों में दबदबा है। बसपा के उत्थान में भी पटेलों का हाथ रहा है। देश का पहला बसपा सांसद रीवा से पटेल समाज से ही बना था। मंदसौर गोलीकांड के बाद यहां का पटेल नेतृत्व न तो मुखर हुआ और न ही पाटीदारों के असंतोष को आगे ले जा पाया। यह स्थिति भाजपा, कांग्रेस दोनों दलों में थी।

 

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि हार्दिक पटेल, जिग्नेश और अल्पेश से पार्टी स्तर पर चर्चा हो रही है। संभव है पार्टी को इनका लाभ मिलेगा। वहीं आदिवासी कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष का कहना है कि ये नेता गुजरात में हमारे सहयोगी रहे हैं, यहां भी ये हमारा सहयोग करते हैं तो इसमें क्या बुराई है। पार्टी चुनाव जीतने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। दूसरी ओर इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाया है। पार्टी के मीडिया प्रभारी लोकेन्द्र पाराशर ने कहा कि कांग्रेस हमेशा से जातिगत राजनीति करती रही है, गुजरात में फ्लॉप रहे उसके नेता व फॉर्मूले को मप्र में लागू करना चाहते हैं।

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