मध्यप्रदेश में कांग्रेस पंद्रह साल बाद सत्ता में वापसी की है। माना जाता है कि कांग्रेस की इस सफलता के पीछे आदिवासियों की बड़ी भूमिका रही है। लेकिन पार्टी के साथ दिक्कत यह है कि प्रदेश में आदिवासियों का कोई भी सर्वमान्य नेता नहीं है। ऐसे में पार्टी में जो आदिवासी नेता हैं, उन्हीं में से तलाश शुरू हो गई है।
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आदिवासी वोटों के सहारे ही सत्ता का स्वाद चखने वाली कांग्रेस नहीं चाहती है कि अब आदिवासी वोटों का बिखराव हो। एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार आदिवासी वोटरों को जोड़े रखने के लिए पार्टी सर्वमान्य नेता की तलाश कर रही है। बताया जाता है कि कमलनाथ सरकार में मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने तो परोक्ष रूप से गृह मंत्री बाबा बच्चन को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग कर दी है। वह बच्चन को अनुभवी नेता मानते हैं।
आदिवासी वोटों के सहारे ही सत्ता का स्वाद चखने वाली कांग्रेस नहीं चाहती है कि अब आदिवासी वोटों का बिखराव हो। एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार आदिवासी वोटरों को जोड़े रखने के लिए पार्टी सर्वमान्य नेता की तलाश कर रही है। बताया जाता है कि कमलनाथ सरकार में मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने तो परोक्ष रूप से गृह मंत्री बाबा बच्चन को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग कर दी है। वह बच्चन को अनुभवी नेता मानते हैं।
22 फीसदी है आबादी
मध्यप्रदेश में आदिवासियों की आबादी करीब 22 फीसदी है। 230 में से 47 विधानसभा क्षेत्र इनके लिए आरक्षित है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 47 में से 30 सीटें इनमें से जीती थीं। वहीं, कांग्रेस 114 विधायकों में 25 फीसदी से ज्यादा आबादी आदिवासियों की ही हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के इस वर्ग की एक भी सीट हासिल नहीं हुई।
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एक दौर में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास आदिवासियों के कई बड़े नेता थे। जिनमें दलवीर सिंह, भंवर सिंह पोर्ते और जमुना देवी रहे हैं। इनकी प्रदेश की सियासत में तूती बोलती थी, चाहे पक्ष में रहे हों या फिर विपक्ष में। लेकिन जमुना देवी के निधन के बाद कांग्रेस में इस वर्ग का कोई भी बड़ा नेता उभर कर नहीं आया। जो हैं उनकी राजनीतिक जमीन कमजोर है।
एक दौर में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास आदिवासियों के कई बड़े नेता थे। जिनमें दलवीर सिंह, भंवर सिंह पोर्ते और जमुना देवी रहे हैं। इनकी प्रदेश की सियासत में तूती बोलती थी, चाहे पक्ष में रहे हों या फिर विपक्ष में। लेकिन जमुना देवी के निधन के बाद कांग्रेस में इस वर्ग का कोई भी बड़ा नेता उभर कर नहीं आया। जो हैं उनकी राजनीतिक जमीन कमजोर है।
इन चेहरों पर लगा सकती है दांव
वहीं, अगर मध्यप्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के आदिवासी नेताओं पर गौर करें तो सरकार में मंत्री उमंग सिंगार, ओमंकार सिंह मरकाम, विधायक फुंदेलाल सिंह मार्को के चेहरे सामने आते हैं। ये सभी नई पीढ़ी के नेता हैं। पार्टी ने इन चेहरों पर इसलिए दांव लगा सकती है कि ये आदिवासियों के बीच सक्रिय हैं।
वहीं, अगर मध्यप्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के आदिवासी नेताओं पर गौर करें तो सरकार में मंत्री उमंग सिंगार, ओमंकार सिंह मरकाम, विधायक फुंदेलाल सिंह मार्को के चेहरे सामने आते हैं। ये सभी नई पीढ़ी के नेता हैं। पार्टी ने इन चेहरों पर इसलिए दांव लगा सकती है कि ये आदिवासियों के बीच सक्रिय हैं।
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राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि मध्यप्रदेश की राजनीति में एक दौर में आदिवासियों के बीच कांग्रेस की गहरी पैठ थी। लेकिन कांग्रेस में उस वर्ग के नेताओं को महत्व नहीं मिल पाया। साथ ही जो नेता निकले उन्होंने आदिवासी समाज की संस्कृति से काफी दूरी बना ली है। ऐसे में कांग्रेस आदिवासी अध्यक्ष चाहती हैं तो वैसे नेता की तलाश करे जो उनके बीच का हो। साध ही उनका रहन-सहन, बोलचाल सबकुछ आदिवासियों से मिलता हो।
राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि मध्यप्रदेश की राजनीति में एक दौर में आदिवासियों के बीच कांग्रेस की गहरी पैठ थी। लेकिन कांग्रेस में उस वर्ग के नेताओं को महत्व नहीं मिल पाया। साथ ही जो नेता निकले उन्होंने आदिवासी समाज की संस्कृति से काफी दूरी बना ली है। ऐसे में कांग्रेस आदिवासी अध्यक्ष चाहती हैं तो वैसे नेता की तलाश करे जो उनके बीच का हो। साध ही उनका रहन-सहन, बोलचाल सबकुछ आदिवासियों से मिलता हो।