यह भी हैरान करने वाली बात है कि कुछ घूसखोरों को लोकायुक्त पुलिस ने गिरफ्तार किया है। ऐसे मामलो में सीआरपीसी की धारा को भूल जाते हैं और भ्रष्टाचार निवारण कानून को आधार बनाते हैं। एक अधिकारी ने बताया, ‘ये ऐसे घूसखोर हैं, जो या तो जांच में मदद नहीं करते हैं या इनके पास घूस के अथाह खजाने का अंदेशा होता है।’
राजस्थान, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में रिश्वतखोरों को जमानत नहीं दी जाती है। गिरफ्तारी के बाद उन्हें विशेष कोर्ट में पेश किया जाता है, वहीं से रिमांड, जेल या रिहाई का फैसला होता है।
इसी माह सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17ए को लागू कर दिया है। इसके बाद तहत भ्रष्ट अधिकारियों, कर्मचारियों पर कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री से लेकर प्रशासनिक विभाग की अनुमति तक अनिवार्य कर दी गई है। भ्रष्टों के लिए यह दोहरी खुशी जैसा है। एक तो वे गिरफ्तार नहीं किए जा रहे और दूसरा जिस विभागाधिकारी की छत्रछाया में वह भ्रष्टाचार कर रहा है, स्वाभाविक रूप से वह कार्रवाई की अनुमति नहीं देगा। ऐसे में वह बचता रहेगा।
सीआरपीसी की धारा 41 में गिरफ्तारी से जुड़े प्रावधान तय हैं, सीआरपीसी में तय प्रावधानों के हिसाब से ही लोकायुक्त पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी और जमानत का निर्णय लेती है।
– जस्टिस एनके गुप्ता, लोकायुक्त मध्यप्रदेश