इस पर कलेक्टर हर्षिका सिंह ने सात जनवरी को जिला पंचायत के सीईओ सुनील दुबे की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की है। इसमें कृषि विभाग की प्रभारी उप संचालक मधु अली को बतौर सचिव और नायब तहसीलदार राजेंद्रनाथ प्रजापति को सदस्य रखा गया है। 15 दिन में रिपोर्ट अनुसूचित जनजाति आयोग को देनी है।
योजना में फर्जीवाड़े की शिकायत आरटीआइ एक्टिविस्ट पुनीत टंडन ने आयोग में की थी। बताया गया है कि 2016-17 में मंजूर योजना में 15 पीबीटीजी जिले विशेष जनजाति समूह वाले जिले के अलावा 20 अन्य आदिवासी जिलों के लिए 110 करोड़ रुपए जारी किए गए थे। योजना का क्रियान्यन कृषि विभाग द्वारा किया गया। इसमें नियम विरुद्ध क्रियान्वयन ही बदल दिया गया।
वर्मी कम्पोस्ट किट के साथ ही जैविक खाद बनाने हितग्राहियों को सक्षम बनाना था, पर कृषि विभाग ने वर्मी कम्पोस्ट की जगह बीज किट मुहैया कराए। इसके अलावा हितग्राहियों को राशि बैंकों में नहीं दी गई। साल 2018 में कांग्रेस सरकार के दौरान विधानसभा में मामला उठा था। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने सात विधायकों की जांच समिति बनाई थी। हालांकि सरकार बदलने के बाद ये मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
चौकाने वाली जानकारी
आरटीआइ में पता चला कि पीवीटीजी वाले जिलों में संरक्षित जनजाति बैगा, सहरिया और भारिया जनजाति के लोगों के अलावा अन्य जनजाति और सामान्य, अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को लाभ दिया गया। पीवीजीटी क्षेत्र के लोगों की सूची एवं अन्य आदिवासी हितग्राहियों की सूची लगभग एक जैसी है। सूचियों में थोड़ा बदलाव किया गया। मंडला के कुन्द्रा गांव की सूची में कई अन्य जातियों के लोगों को लाभ देने का पता चला है।