बाघ आंकलन – वर्ष 2018 में प्रदेश की सभी 9 हजार बीटों में एक साथ बाघों की गणना शुरू की गई थी। इस वर्ष संसाधन की कमी के चलते इसे पहले चरण की गणना को चार भागों में बांटा गया है। क्योंकि इसमें बाघों की गणना के साथ ही उन्हें गणना एप में आन लाइन सभी संकेतों को दर्ज करना होगा। इसके लिए वन विभाग को पिछली गणना की तुलना में इस वर्ष डेढ़ गुने से अधिक कर्मचारियों की जरूरत है। पिछले वर्ष 18 हजार से अधिक कर्मचारियों की बाघ गणना में ड्यूटी लगाई गई थी।
बाघ गणना का पहला चरण 17 नवंबर को शुरू हो गया है। शुरूआत के ढाई हजार बीटों का पहला चरण 23 नवंबर को समाप्त हो जाएगा। इन सात दिनों में बाघों द्वारा पेड़ों पर खरोंच मारने के निशान, घास पर बैठने-लोटने के निशान, पगमार्क, मल-मूत्र के प्रमाणों की तलाश की जाएगी। टाइगर रिजर्व पालपुर कूनों, खिवनी सेंचुरी के अलावा प्रदेश के 13 वनमंडल एवं वनक्षेत्र में कैमरे से बाघों की तस्वीर लेना शुरू कर दिया है। इन क्षेत्रों में 3100 ट्रेप कैमरे लगाए गए हैं। जबकि वन विभाग को 6 हजार कैमरों की जरूरत है।
दस माह में आएगा परिणाम
मोबाइल ऐप के जरिए बाघों की गणना करने, फोटो अपलोड करने और डाटा अपलोड करने से बाघों की गणना के परिणाम दस माह के अंदर आने की उम्मीद है। डाटा मिलने के तुरंत बाद वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया देहरादून इसकी वैज्ञानिक रूप से आकलन भी शुरू कर देगा। अभी तक गणना का काम मैनुवल होता था, इसके बाद इसे उनके सिस्टम पर अपलोड किया जाता था, इसमें काफी समय लगता था। इसके चलते बाघों की गणना के आंकड़े आमतौर पर सवा से डेढ़ साल में आते थे।