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कई हाईप्रोफाइल आरोपियों की गिरफ्तारी तय, 150 छात्रों की सीट भी होगी शिफ्ट

locationभोपालPublished: Dec 15, 2017 10:46:47 am

Submitted by:

Manish Gite

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चिकित्सा शिक्षा विभाग को आदेश दिया है कि वह शहर के एक निजी मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहे १५० छात्रों को

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भोपाल. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चिकित्सा शिक्षा विभाग को आदेश दिया है कि वह शहर के एक निजी मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहे १५० छात्रों को कहीं और शिफ्ट कर दे। साथ ही एम्स व सीबीआई को कहा है कि वे कॉलेज के दस्तावेज की जांच करें। मामला 2017-18 में दाखिलों से जुड़ा हुआ है।

 

दरअसल 2017-18 की काउंसलिंग से पहले एमसीआई ने मेडिकल कॉलेज में सुविधाओं का हवाला देते हुए आरकेडीएफ मेडिकल कॉलेज की मान्यता निलंबित कर दी थी। लेकिन कॉलेज प्रबंधन ने तमाम दस्तावेजों के आधार पर सुम्रीम कोर्ट से मान्यता बहाल करा ली और काउंसलिंग में शामिल होकर एमबीबीएस की 150 सीटों पर प्रवेश दे दिए।

 

इस बीच कुछ छात्रों ने २५ अक्टूबर, २०१७ को सुप्रीम कोर्ट में कॉलेज के खिलाफ याचिका दायर की। इस याचिका और मान्यता से जुड़े मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई और सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त आदेश जारी कर दिया।

 

अस्थायी आधार पर दिए थे दाखिले
सुप्रीम कोर्ट से मान्यता मिलने के बाद कॉलेज काउंसलिंग के दूसरे चरण में शामिल हुआ था। प्रवेश देते समय कॉलेज ने छात्रों को बताया था कि आपका प्रवेश अस्थायी है। क्योंकि मान्यता का मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग हैं। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने भी छात्रों की फीस अपने पास जमा कर ली।

 

झूठे हैं दस्तावेज
छात्रों की ओर से पक्ष रख रहे अधिवक्ता आदित्य संघवी ने बताया, सुनवाई में एमसीआई ने दलील दी कि कॉलेज द्वारा दिए गए दस्तावेज बनावटी हैं। कॉलेज में ना तो मरीज हैं ना ही ब्लड बैंक। एेसे में मान्यता नहीं दी जा सकती।

अधिवक्ता संघवी ने बताया कि मेडिकल कॉलेजों की एनआरआई कोटे की १०४ सीटें खाली हैं। वहीं डीएमई ने हाल ही में माना था कि उन्होंने मॉपअप राउंड में ४० से ज्यादा सीटें नॉन डोमेसाइल को दी हैं, यह सीटें भी खाली होंगी। इन्ही सीटों पर छात्रों को दाखिला दिया जा सकता है।

 

व्यापमं घोटाले के आरोपी प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के 6 पदाधिकारियों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने व्यापमं घोटाले में सीबीआई द्वारा आरोपी बनाए गए प्राइवेट मेडिकल कॉलेज के संचालक और व्यापमं अधिकारियों को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है। इस मामले में आरोपियों द्वारा अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी। इन याचिकाओं पर हाईकोर्ट ने सुनवाई पहले ही पूरी कर ली थी। लेकिन फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले के आदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार को जारी कर दिए। पूर्व डीएमई एनएम श्रीवास्तव और प्राइवेट मेडिकल कॉलेज के 5 पदाधिकारियों की जमानत अर्जियां नामंजूर कर दी है।

 

इन पर फैसला रखा था सुरक्षित
चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने व्यापमं घोटाले के आरोपी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज के संचालकों की अग्रिम जमानत याचिका पर बुधवार को सुनवाई पूरी कर ली थी। युगलपीठ ने 5 में से चार आरोपियों की याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखने के निर्देश दिए थे। हाईकोर्ट ने डॉ. दिव्य किशोर सतपथी, जय नारायण चौकसे और डॉ. अजय गोयनका की जमानत याचिकाओं पर भी 6 दिसंबर को सुनवाई पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

 

गिरफ्तारी से बचने मांगा था अग्रिम
सीबीआई ने तत्कालीन डीएमई एससी तिवारी और ज्वॉइंट डीएमई एनएम श्रीवास्तव, पीपुल्स मेडिकल कॉलेज में एडमिशन कमेटी के सदस्य डॉ. विजय कुमार पंड्या और डॉ. विजय कुमार रमणानी के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं। इन मामलों में गिरफ्तारी से बचने आरोपियों की ओर से ये याचिका दायर की गईं थीं। याचिका नामंजूर किए जाने के साथ ही सीबीआई द्वारा आरोपित बनाए गए प्राइवेट कॉलेज के पदाधिकारियों पर गिरफ्तारी की तलवार लटक गई है।

 

गलत तरीके से दिए प्रवेश
प्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले में जिन आरोपितों की अग्रिम याचिका हाईकोर्ट ने खारिज की है, ये सभी रसूखदार माने जाते है। जानकारों के मुताबिक व्यापमं घोटाले की अवधी के दौरान प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों ने भी एमबीबीएस नियमों को दरकिनार करके छात्र-छात्राओं को प्रवेश दिए। अपेक्षाकृत मेरिट में कम नंबर पाने वाले उम्मीदवारों को गलत तरीके से प्रवेश देकर उनसे फीस के रूप में मोटी राशि वसूली की।

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