कई बार अकेले रास्तों से गुजरीं, लेकिन हिम्मत नहीं हारी प्रोग्राम मैनेजर साक्षी बताती हैं कि मई 2020 में ज्वाइन करते समय नहीं सोचा था कि यह काम इतना कठिन होने वाला है। शुरूआत में लगा कि कोविड की प्रोग्रामिंग ही तो करना है, कर लेंगे। धीरे धीरे एहसास हुआ कि उनके काम की कितनी अहमियत है। उनके द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर ही कोविड से लडऩे की रणनीति तैयार होती है। तब से लगने लगा कि चाहे कुछ भी क्यों न हो वे जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटेंगी। उन्होंने बताया कि पहले लाकडाउन में रात को दो बजे घर पहुंचती थी, डर भी लगता था, कई बार मन में आया कि काम छोड़ दूं लेकिन दूसरे ही पल विचार बदल गया। उहोंने बताया कि घर में नानाजी बीमार हुए तो मैं ऑफिस आती, अपना काम करती, फिर अस्पताल जाकर उन्हें खाना खिलाकर आफिस आ जाती। होली दिवाली पर भी लोग त्यौहार मना रहे थे तो हम कम्प्यूटर पर काम कर रहे थे, क्योंकि वो ज्यादा जरूरी था।
सास ससुर को मुझ पर गर्व हैप्रोग्राम मैनेजर दीपिका सोनी भी लगातार काम कर रही हैं। घर पर बुजुर्ग दादी सास के अलावा सास ससुर की जिम्मेदारी भी दीपिका पर ही है, लेकिन उन्होंने इसे कभी अपने काम के बीच नहीं आने दिया। दीपावली हो या कोई और त्यौहार पूजन के साथ लैपटॉप भी साथ ही रहता है ताकि उनका काम न रुके। बीते साल दीपिका की ड्यूटी एम्स में लगाई गई, उस समय तीन माह प्रेग्नेंट होने के बावजूद उन्होंने ड्यूटी निभाई। इसी दौरान भीड़ में जोर से धक्का लगने से उनकी तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गई इसके बावजूद उन्होंने अपने काम को नहीं छोड़ा। वे बताती है कि उनके पति और परिवार ने हमेशा उनका हौसला बढ़ाया।