वन मंडल, भोपाल बड्र्स की ओर से की जा रही दो दिवसीय मगर और पक्षी गणना के पहले दिन शनिवार को ग्वालियर से आए पूर्व वन अधिकारी और सरीसृप विशेषज्ञ ऋषिकेश शर्मा और जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक प्रत्यूष महापात्रा समरधा रेंज के एसडीओ आरएस भदौरिया, रेंजर शिवपाल पिपलदे स्टाफ के साथ मगरों की गणना करने निकले। अलग-अलग दलों ने कलियासोत के किनारों और नाव से निकली टीम ने पानी के टापुओं सहित अन्य स्थानों पर मगरों की तलाश की। पहले ही दिन दल को आधा दर्जन से अधिक व्यस्क नर और मादा मगर नजर आए।
सिर के आकार से साढ़े छह का कर दें गुणा
विशेषज्ञ ऋषिकेश शर्मा और प्रत्यूष महापात्रा ने वन विभाग के कर्मचारियों को दो दिनों तक मगर की पहचान के लिए प्रशिक्षण दिया। शर्मा ने बताया कि गणना में मगरों के आकार के आधार पर संख्या की जाती है यदि मगर का सिर्फ सर दिखाई देता है तो उसके आकार में साढ़े छह गुना का गुणा करके पूरे आकार का पता लगाया जाता हैं। इसी तरह पंजे की लम्बाई से 12 गुना तो सिर्फ स्कॉट यानी पूंछ का पिछला हिस्सा दिखने पर उसमें 65 का गुणा कर आकार निकालते हैंं। कर्मचारियों को इन अंगों की लम्बाई का मापने का प्रशिक्षण दिया।
विशेषज्ञ ऋषिकेश शर्मा और प्रत्यूष महापात्रा ने वन विभाग के कर्मचारियों को दो दिनों तक मगर की पहचान के लिए प्रशिक्षण दिया। शर्मा ने बताया कि गणना में मगरों के आकार के आधार पर संख्या की जाती है यदि मगर का सिर्फ सर दिखाई देता है तो उसके आकार में साढ़े छह गुना का गुणा करके पूरे आकार का पता लगाया जाता हैं। इसी तरह पंजे की लम्बाई से 12 गुना तो सिर्फ स्कॉट यानी पूंछ का पिछला हिस्सा दिखने पर उसमें 65 का गुणा कर आकार निकालते हैंं। कर्मचारियों को इन अंगों की लम्बाई का मापने का प्रशिक्षण दिया।
नहीं चलेगा पता, नर है या मादा
विशेषज्ञों का कहना है कि मगर के आकार से उसकी पहचान तो सुनिश्चित की जा सकती है, लेकिन वह नर है या मादा यह दूर से देखकर पता करना बेहद मुश्किल होता।
गणना में यह भी पता चला कि कलियासोत में न केवल कई व्यस्क जोड़े हैं बल्कि उनके सुरक्षित घोंसले भी हैं। मादा मगर अंडे देंगी जिससे इनका कुनबा बढ़ेगा।
डीएफओ आलोक पाठक का कहना है, अब तक हमें यह पता ही नहीं था कि बडे-बडे जलाशयों कलियासोत और केरवा में कितने मगर हैं। एसडीओ आरएस भदौरिया ने इनकी गणना का आइडिया दिया है।
वैज्ञानिक प्रत्यूष महापात्रा ने बताया कि, पहली बार सिस्टेमेटिक क्रोकोडाइल और बर्ड सेंसस की जा रही है। हमें सात फीट तक के मगर दिखे हैं। खुशी की बात है कि घनी आबादी वाले शहर के पास बाघ भी हैं तो कई मगर भी। भविष्य में इसे बनाए रखने के लिए नागरिकों को कुछ चौंकन्ना रहना होगा जिससे टकराव नहीं हो।
विशेषज्ञों का कहना है कि मगर के आकार से उसकी पहचान तो सुनिश्चित की जा सकती है, लेकिन वह नर है या मादा यह दूर से देखकर पता करना बेहद मुश्किल होता।
गणना में यह भी पता चला कि कलियासोत में न केवल कई व्यस्क जोड़े हैं बल्कि उनके सुरक्षित घोंसले भी हैं। मादा मगर अंडे देंगी जिससे इनका कुनबा बढ़ेगा।
डीएफओ आलोक पाठक का कहना है, अब तक हमें यह पता ही नहीं था कि बडे-बडे जलाशयों कलियासोत और केरवा में कितने मगर हैं। एसडीओ आरएस भदौरिया ने इनकी गणना का आइडिया दिया है।
वैज्ञानिक प्रत्यूष महापात्रा ने बताया कि, पहली बार सिस्टेमेटिक क्रोकोडाइल और बर्ड सेंसस की जा रही है। हमें सात फीट तक के मगर दिखे हैं। खुशी की बात है कि घनी आबादी वाले शहर के पास बाघ भी हैं तो कई मगर भी। भविष्य में इसे बनाए रखने के लिए नागरिकों को कुछ चौंकन्ना रहना होगा जिससे टकराव नहीं हो।