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मध्यप्रदेश की राजनीति में क्रॉस वोटिंग का दलदल

locationभोपालPublished: Aug 11, 2022 02:06:51 am

Submitted by:

Veejay Chaudhary

मध्यप्रदेश में हाल में हुए पंचायत व नगरीय निकाय के चुनाव के बाद अब निकायों के अध्यक्षों का चुनाव हो रहा हैै। चुने हुए पार्षद, जनपद व जिला पंचायत प्रतिनिधि अध्यक्षों के लिए वोट कर रहे हैं। इसमें भारी खरीद-फरोख्त हो रही है। जन-जन की जुबां पर यही चर्चा है कि विधायक बिक बिककर सरकारें पलट रहे हैं तो इन अदने प्यादों को तो बिकने में विचार ही नहीं करना चाहिए। मगर सवाल तो यह है कि बिकने व खरीदनेवाले पांच साल तक करेंगे क्या!!! सेवा करेंगे या मेवा बटौरेंगे!!!

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मध्यप्रदेश के स्थानीय निकाय चुनाव में वोट पाने के बाद नेतागण अब वोटर से घिनौना मजाक करने पर उतारू हैं। जिस चिह्न पर चुनाव जीते, जिसके खिलाफ जीते अब उसी की गोदी में जाकर बैठ गए। दोनों ही पार्टियों में यह हो रहा है। देशभर में चल रहे हॉर्स ट्रेडिंग के इस दौर में क्रॉस वोटिंग जैसा शब्द प्रदेश में नए रेकॉर्ड बना रहा है। लगभग हर कस्बे से खबर आ रही है कि क्रॉस वोटिंग हो गई और हारने वाला जीत गया।
क्या नेताओं को यह गलतफहमी है कि जनता को कुछ समझ में नहीं आ रहा है या जनता निपट गंवार है? यदि कोई ऐसा सोच रहा है तो उससे बड़ा शुतुरमुर्ग कोई और नहीं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा जैसे कुछ नेता तो खुलकर कह रहे हैं कि विचारधारा से प्रभावित होकर लोग पाला बदल रहे हैं। कमाल है… एक रात में ही किसी का दिमाग ऐसे कैसे बदल सकता है? या तो कहने वाले का दिमाग ठीक नहीं है या कोई बड़ी डील है।
अफसोस यह है कि स्थानीय निकाय के चुनाव में दल-बदल कानून लागू नहीं, इसी कारण सबकुछ जायज बताया जा रहा है। बड़ी ही बेशर्मी से भाजपाई कांग्रेसी बनकर इतरा रहा है और कांग्रेसी भाजपाई बनकर। कानूनन उन्हें कोई रोक नहीं सकता है और इसी फायदा उठाकर वे कुटिल अट्टहास कर रहे हैं। इस अट्टहास से लोकतंत्र व्यथित है। लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत वोट है और उसका अपमान करना पीठ में छुरा खोंपने से कम नहीं। जो लोग लोकतंत्र को लहूलुहान कर रहे हैं, उन्हें क्षमा नहीं किया जाना चाहिए। जिसे जनता ने सर-आंखों पर बैठाया, दगाबाजी करने पर उसे दंडित करने का दायित्व भी जनता का ही है। हमें हमेशा उन पार्षदों, जनपद और जिला पंचायत प्रतिनिधियों के चेहरे याद रखना चाहिए, जो जीतने के बाद गिरगिट की तरह अपना रंग बदल रहे हैं। जो नेता धंधेबाज हैं, जो बिकाऊ हैं, जो चालबाज हैं, जो वोट से नोट कमा रहे हैं, जो दलाल हैं, जो विकृत हैं, जो लालची हैं, जो पाखंडी है …वो सब दोमुंहे सांप से कम नहीं। इन्होंने लोकतंत्र की पवित्रता में जहर घोला है। ऐसे कथित नेताओं को तो समाज से भी बहिष्कृत कर देना चाहिए।
साथ ही वोटर को राजनीतिक दलों के आकाओं की आंखों में आंखें डालकर सवाल करना चाहिए। पूछना चाहिए कि आखिर जनमत का अपमान करने का हक उन्हें किसने दिया? क्या उन्हें फिर कभी वोट मांगने जनता के दरबार में नहीं जाना हैै?
राजनेताओं को गंभीर मंथन करना होगा कि राजनीति को क्रास वोटिंग के दलदल में तब्दील करने के बजाए इसे ऐसी उपजाऊ जमीन बनाए जिस पर सेवाभावी नौजवानों की फसल लहलहा सके। ध्यान रहे, प्रदेश में राजनीति का माहौल सुधरने पर ही बेहतर स्थितियां निर्मित होंगी और तभी साफ सुथरी छवि के लोगों में राजनीति के क्षेत्र में आने कीे होड़ पैदा होगी।
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