न्यायालय का आदेश आने से पहले हजारों उम्मीदवार फीस जमा कर चुके थे। अब उन्हें नई परीक्षा के लिए एक बार फिर शुल्क जमा करना होगा।
भोपाल। डी-मेट परीक्षा के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवारों को दोहरी चपत लगने वाली है। न्यायालय ने पिछले दिनों डी-मेट परीक्षा कैसिंल कर निजी व शासकीय कॉलेजों के लिए एक ही परीक्षा कराने के निर्देश दिए थे। न्यायालय का आदेश आने से पहले हजारों उम्मीदवार फीस जमा कर चुके थे। अब उन्हें नई परीक्षा के लिए एक बार फिर शुल्क जमा करना होगा। इधर एमपीडीसी ने डी-मेट का शुल्क लौटाने से इंकार कर दिया है।
एमपीडीसी ने डी-मेट कराने के लिए दस मई से परीक्षा फॉर्म जमा करना शुरू कर दिए थे। करीब दस हजार से ज्यादा छात्रों ने इसके लिए आवेदन भी कर दिया था। इस बार ऑफलाइन परीक्षा के लिए करीब तीन हजार रुपए शुल्क लिया गया था। कोर्ट के आदेश पर अब उन्हें एआईपीएमटी के फॉर्म नए सिरे से भरने होंगे। इसकी फीस भी करीब तीन हजार रुपए हैं। डी-मेट के लिए आवेदन कर चुके उम्मीदवार फीस वापसी की मांग कर चुके हैं, लेकिन एमपीडीसी ने इस मामले से पल्ला झाड़ लिया।
निजी कंपनी पर डाली जिम्मेदारी
एमपीडीसी के संचालनकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने परीक्षा की जिम्मेदारी एक निजी एजेंसी को सौंपी थी। उसी ने फीस जमा कराई है। इसमें उनका सीधा कोई संबंध नहीं है। कंपनी को परीक्षा तैयारियों में काफी खर्च करना पड़ा है। ऐसे में यदि वह फीस नहीं लौटाती तो वह कुछ नहीं कर सकते।
इनका कहना है-
परीक्षा शुल्क निजी कंपनी के खाते में जमा हुआ है। वह फीस लौटाएगी या नहीं। यह कंपनी को ही तय करना है।
डॉ. अजय गोयनका, अध्यक्ष, एमपीडीसी