scriptराग मिश्र पहाड़ी में दादरा किया पेश, गायन सुनकर श्रोता हुए मंत्रमुग्ध | Dadra performed in Raag Mishra Pahari, the audience was mesmerized aft | Patrika News

राग मिश्र पहाड़ी में दादरा किया पेश, गायन सुनकर श्रोता हुए मंत्रमुग्ध

locationभोपालPublished: Sep 23, 2021 10:45:34 pm

Submitted by:

mukesh vishwakarma

एकाग्र शृंखला गमक में गायन और तबला वादन का आयोजन

राग मिश्र पहाड़ी में दादरा किया पेश, गायन सुनकर श्रोता हुए मंत्रमुग्ध

राग मिश्र पहाड़ी में दादरा किया पेश, गायन सुनकर श्रोता हुए मंत्रमुग्ध

भोपाल. संस्कृति विभाग की एकाग्र शृंखला गमक में बुधवार को उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी की ओर से तृप्ति कुलकर्णी और साथियों का गायन हुआ। जबकि भोपाल के अंशुल प्रताप सिंह एवं साथियों ने तबला वादन की प्रस्तुति दी। इसका प्रसारण सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किया गया। प्रस्तुति की शुरुआत तृप्ति कुलकर्णी और साथियों ने गायन से की। जिसमें कलाकारों ने राग यमन में बड़ा ख्याल, विलंबित रूपक और छोटा ख्याल तीन ताल में निबद्ध रचना की प्रस्तुति दी।

इसके बाद राग मिश्र पहाड़ी में दादरा से प्रस्तुति का समापन किया। प्रस्तुति में हारमोनियम पर डॉ. रचना शर्मा एवं तबले पर अनूप पनवर ने संगत की। अगली प्रस्तुति अंशुल प्रताप सिंह एवं साथियों द्वारा तबला वादन में तीन ताल में उठान पेशकार, कायदे, रेले, गत, परन,फर्द, चलन, टुकड़े और गत की प्रस्तुति दी। मंच पर सारंगी पर हनीफ हुसैन, तानपुरे पर तरूणप्रीत कौर ने संगत की।

भाषा में सदैव आध्यात्म व्याप्त होता है: बीना शर्मा
आधुनिक विभागीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन
भोपाल. केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में बुधवार को आधुनिक विषय विभाग की ओर से ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संत साहित्य की उपादेयताÓ विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार शुरू हुआ। उद्घाटन मुख्य अतिथि निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान प्रो. बीना शर्मा ने किया। प्रो. बीना शर्मा ने वर्तमान काल में संत साहित्य को अत्यन्त ही उपयोगी बताते हुए कहा कि महामारी के दुष्प्रभाव सिर्फ शारीरिक व मानसिक ही नहीं प्रकट हुए हैं बल्कि आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था भी डगमगा गई है।
ऐसे समय में संत साहित्य में दिए गए विचार एवं सिद्धान्त मानव को सही रास्ता दिखा सकते हैं। विशिष्ट अतिथि प्रो. शरदचन्द्र शर्मा ने कहा कि सभी भाषाओं में किसी न किसी काल विशेष में ऐसा रहा है कि रचनाओं में आध्यात्मिकता का प्रभाव प्रबल हुआ हो। भाषा में सदैव आध्यात्म व्याप्त होता है। पाठकों को चाहिए कि वे रचना का आनन्द प्राप्त करते हुए रचना में दी गई सीख पर भी ध्यान दें। सभाध्यक्ष प्रो. जे. भानुमूर्ति ने इस अवसर पर कहा कि संस्कृत एवं सभी भारतीय भाषाओं में समाज के सभी आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक आदि पक्षों हेतु महत्त्वपूर्ण बिन्दु उपलब्ध हैं। शोधकर्ताओं का कर्तव्य है कि वे समाजोपयोगी ऐसे शोध करें कि इन बिन्दुओं का लाभ वर्तमान समय में उठाया जा सके। कार्यक्रम के अन्त में डॉ. मोहिनी अरोरा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। उद्घाटन सत्र में संचालन डॉ. मंजू सिंह का था।
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