सरकार किसानों की सहकारी समितियों के जरिए दूध इक_ा करती है। यह काम सहकारिता के तहत डेयरी फेडरेशन करता है। फेडरेशन सांची के नाम से दूध या उसके उत्पाद बेचता है। प्रदेश में भोपाल,इंदौर,जबलपुर,ग्वालियर और बुंदेलखंड दुग्ध संघ हैं जो ग्रामीण प्राथमिक दुग्ध सहकारी समितियों से दूध लेते हैं,ये समितियां किसानों और पशुपालकों से दूध इक_ा करती हैं। प्रदेश में ४६९८ सहकारी समितियां हैं जिनसे २ लाख ५७ हजार ४१८ किसान जुड़े हैं। इन किसानों से प्रतिदिन १० लाख १० हजार ८८८ किलो दूध इक_ा होता है,जबकि ७ लाख ४० हजार २७१ किलो दूध का विक्रय होता है। बाकी से दुग्ध उत्पाद तैयार होते हैं। प्रदेश में दूध का कुल उत्पादन १५० लाख लीटर से ज्यादा है। जो कि प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां जैसे अमूल,मदर डेरी और सौरभ जैसी कंपनियां करती हैं। प्रदेश में दूध के कुल उत्पादन में सांची की हिस्सेदारी दस फीसदी भी नहीं है। यानी प्राइवेट सेक्टर की कंपिनयों की प्रदेश के उन गांवों तक पहुंच है जहां तक सरकार नहीं पहुंच पाती है।
कानून के बाद ये होगा असर : – दूध के दाम निर्धारित होने से किसानों को दूध का पूरा और उचित मूल्य मिलेगा,इतना ही नहीं पैसा भी समय पर मिलेगा। अभी देखने में ये आता है कि निजी क्षेत्र की कंपनियां किसानों से दूध तो ले लेती हैं लेकिन पैसे देने में देरी लगाती हैं,कई बार दूध में कमी निकालकर पैसे काटकर देती हैं।
……………………………….. वर्जन :
– प्रदेश में दुग्ध कारोबार को देखते हुए सरकार रेग्युलेटरी एक्ट बनाने पर विचार कर रही है। लोगों को सही कीमत पर शुद्ध दूध मिले और किसानों को उनके उत्पादन का उचित दाम मिले,इसके लिए प्राइवेट सेक्टर की निगरानी और उस पर नियंत्रण जरुरी है। सरकार इस दिशा में आगे बढ़ रही है।
…………………… – दूध के बढ़ते कारोबार को देखते हुए ये जरुरी है कि सांची भी निजी क्षेत्रों की प्रतिस्पर्धा में बढ़ सके। इसके लिए सरकार को कानून के साथ-साथ प्रोफेशनल एटीट्यूट भी अपनाना होगा। निजी क्षेत्रों की निगरानी से सरकार उनके तौर तरीके और बिजनेस मॉडल सीख पाएगी।
– सुभाष चंद्र मांडगे डेयरी विशेषज्ञ –