scriptहर साल मरते हैं 27 बाघ, 7 शिकारियों के हाथों से | Die every year 27 Tigers, by the hunter hands of 7 | Patrika News

हर साल मरते हैं 27 बाघ, 7 शिकारियों के हाथों से

locationभोपालPublished: Dec 07, 2018 03:10:03 pm

Submitted by:

harish divekar

– टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स सहित आधा दर्जन प्रस्ताव केन्द्र-राज्य के बीच अटके

Life crisis of tigers in madhya pradesh

Life crisis of tigers in madhya pradesh

प्रदेश में बाघों की सुरक्षा से जुड़े करीब आधा दर्जन प्रस्ताव केन्द्र और राज्य सरकार के बीच फुटबाल बने हुए हैं।

आपसी खींच-तान के चलते यह प्रस्ताव मूर्तरूप नहीं ले रहे हैं, इसके चलते हर साल औसत 27 बाघों की मौतें हो रहे हैं, जिसमें सात बाघ शिकारियों के हाथों मारे जा रहे हैं।
वन विभाग का मानना है कि ज्यादातर बाघों की हत्या तांत्रित क्रियाओं के लिए की गई हैं, यही वजह है कि बाघों की खाल, नाखून, दांत और पूंछ के बाल काट कर ले जाने की घटनाएं बढ़ रही हैं।
प्रदेश में पिछले सात-आठ सालों में बाघों की सुरक्षा, मैनेजमेंट और टाइगर रिजर्व, अभयारण्यों से गांवों की शिफ्टिंग पर 1१२० करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन बाघों की मौत का ग्राफ कर्नाटक की तुलना में कम नहीं हो रहा है।
इस वर्ष भी सबसे ज्यादा बाघों की मौत संरक्षित क्षेत्र (टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क और अभयारण्य) में हुई है। हाल ही में होशंगाबाद वन वृत्त की दो घटनाएं सामने आई हैं।

जिनमें दो बाघों के शिकार हुए हैं। उनके शिकार होने की समय-सीमा में भी कोई खास अंतर नहीं है। दोनों बाघों का शिकार किया गया है और दोनों के पंजे और दांत गायब थे ।
सबसे ज्यादा बाघों की मौत और एक तेंदुए का शिकार महज 1 एक माह के अंतराल में हुआ है। पिछले साल भी संरक्षित क्षेत्र के अंदर जहर और करंट से बाघों की मौत के मामले सामने आए थे। इनमें से कई मामले में वन विभाग का कर्मचारी भी शामिल थे।

एक नजर बाघों की मौत के कारणों पर

9 की आपसी लड़ाई से मौत
3 बाघों का शिकायर किया गया

2 की करेंट लगाकर और एक की फंदा लगाकर मारा गया
2 की जहर देकर मारा गया।
4 बाघों की प्राकृति मौत हुई है।
4 बाघों की मौत का कारण ही नहीं पता चल पाया


बाघ प्रबंधन पर खर्च राशि

वर्ष — खर्च राशि

2010-11 — 241 करोड़

2011-12 — 176 करोड़
2012-13 — 098 करोड़

2013-14 — 156 करोड़

2014-15 — 166 करोड़

2015-16 — 086 करोड़

2016-17 — 127 करोड़

२०१७-२०१८–७० करोड़

योग — 1१२० करोड़

ये प्रस्ताव फाइलों में दबे

– रातापानी अभ्यारण को टाइगर रिजर्व क्षेत्र बनाने का प्रस्ताव पर राज्य सरकार पिछले पांच साल से आगे-पीछे हो रहा है। इस मामले में राज्य सरकार केन्द्र को यह जवाब दे देती है कि इसे वाइल्ड लाइफ के दो डिवीजन बना रहे हैं।
हालत यह है कि इस वर्ष सबसे ज्यादा बाघ इन्ही क्षेत्रों में मरे हैं। इसके कोर एरिया में ६० गांव हैं, राजनीतिक कारणों से इन्हें बन विभाग नहीं हटा पा रहा है।
– वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए केन्द सरकार ने टाइगर प्रोटेक्शन फार्स बनाने के लिए करीब पांच साल पहले राज्य सरकार को प्रस्ताव दिए थे। केन्द्र इन फोर्स के लिए सौ फीसदी फंड देने के लिए भी कहा था। राज्य सरकार पांच साल तक इस संबंध में कोई प्रस्ताव केन्द्र को नहीं भेजा। चार साल पहले एक जब राज्य सरकार ने केन्द्र के पास प्रस्ताव भेजा तो केन्द्र ने 60 और 40 फीसदी बजट का फार्मूला बनाकर भेज दिया।
– केन्द ने राष्ट्रीय वन्य प्राणी क्राइम ब्यूरो की तरह राज्य सरकार में भी स्टेट वन्य प्राणी केन्द्री ब्यूरों बनाने का सुझाव दिया था। इस पर राज्य सरकार ने यह कहते हुए प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया कि यहां वन्य प्राणी अपराध पुलिस ही इन कामों को अच्छे से कर रही है।
– एनटीसीए के निर्देशानुसार टाइगर सेल की बैठक हर साल होने चाहिए। जिसमें बाघों की सुरक्षा और संरक्षण को लेकर रणनीति तय की जाती है, लेकिन यहां 2015 के बाद अभी तक यह बैठक नहीं हो पाई है। इस सेल के मुख्य सीईडी डीजी नकवी हैं।
कूनो पालपुर को नेशनल पार्क बनाने और करेरा अभ्यारण्य को डिनोफाई करने का प्रस्ताव केन्द्र में अटका हुआ है।

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टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का प्रस्ताव केन्द्र में लंबित है। केन्द्र सरकार को रिमाइंडर भोजा गया है। रातापानी अभ्यारण्य से गांव जब तक विस्थापित नहीं किए जाएंगे तब तक नेशनल पार्क बनना मुश्किल है।
शहबाज अहमद
पीसीसीसएफ वाइल्ड लाइफ

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