संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर स्वतंत्रता के बाद देश के कानून मंत्री बने थे लेकिन इससे पहले वे ब्रिटिश इंडिया में वायसराय की कार्य परिषद में श्रमं मंत्री रह चुके थे। वायसराय की परिषद में श्रम मंत्री के रूप में सन 1942 से सन 1946 तक के कार्यकाल में डॉ. अंबेडकर ने भारतीय श्रमिकों के हित में कई फैसले लिए। इनमें फैक्ट्रियों में कार्यावधि घटाना सबसे अहम काम था। उस समय कानूनन 14 घंटे काम करना पड़ता था। औसत कार्य दिवस सुबह 9 से रात 11 बजे तक का था। डॉ. अंबेडकर ने बड़ी राहत देते हुए इसमें पूरे 6 घंटों की कटौती कर दी।
नई दिल्ली में सन 1942 में हुए भारतीय श्रम सम्मेलन के 7 वें सत्र में डॉ. अंबेडकर ने भारत में कामकाज के घंटे 14 से घटाकर 8 घंटे कर दिए। इस प्रकार फैक्ट्री आदि में काम के लिए 8 घंटों की ड्यूटी निर्धारित कर दी गई। ब्रिटिश इंडिया में बनी सरकार के श्रम सदस्य के रूप में उन्होंने और भी अनेक सुधार किए। कर्मचारियों को महंगाई भत्ता—डीए, अवकाश लाभ, वेतनलाभ का पुनरीक्षण आदि उन्हीं की देन हैं। उन्होंने ट्रेड यूनियन की मान्यता भी अनिवार्य की।
रोजगार कार्यालयों की स्थापना भी की— भारतीय संविधान के जनक डॉक्टर भीमराव अंबेडकर मशहूर विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनेता और समाज सुधारक थे। उन्होंने दलितों के खिलाफ सामाजिक भेदभाव को खत्म करने के लिए लगातार काम किया। कानून मंत्री व ब्रिटिश राज में श्रम मंत्री के रूप में महिलाओं और श्रमिकों के हित में अनेक कदम उठाए। देश में रोजगार कार्यालयों की स्थापना करने में भी उनकी अहम भूमिका थी।
एक नजर
— भारत में श्रम विभाग की स्थापना— नवंबर 1937
— डॉ. अंबेडकर ने श्रम मंत्रालय का कार्यभार संभाला— जुलाई 1942
— भारत में 14 घंटे से घटाकर 8 घंटे का कार्यदिवस हुआ— नवंबर 1942
— भारत में श्रम विभाग की स्थापना— नवंबर 1937
— डॉ. अंबेडकर ने श्रम मंत्रालय का कार्यभार संभाला— जुलाई 1942
— भारत में 14 घंटे से घटाकर 8 घंटे का कार्यदिवस हुआ— नवंबर 1942