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पत्रकारिता प्रोफेशन नहीं मिशन है, जिसके अंदर चिंगारी नहीं वो पत्रकार नहीं बन सकता : डॉ. गुलाब कोठारी

locationभोपालPublished: Oct 09, 2019 03:22:44 pm

Submitted by:

KRISHNAKANT SHUKLA

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी का समाज, संस्कृति और पत्रकारिता विषय पर विशिष्ट व्याख्यान…

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भोपाल/ सृष्टि में अपना पराया कोई नहीं है। हमें अपने मूल्यों के साथ काम करना चाहिए। हमें जीवन के भीतर देखना है। हम दूसरों को देखते हैं आलोचना करते हैं। लेकिन खूद को नहीं देखते। पत्रकारिता जीवन की पहली शर्त है खुद को देखो। मैं क्या नहीं कर सकता। ये बात पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी जी माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित दिशाबोध कार्यक्रम पत्रकारिता के विद्यार्थियों और शिक्षकों को संबोधित करते हुए कही।

पत्रकारिता के मूल्यों को समझाते हुए पत्रिका समूह के प्रधान संपादक ने कहा कि मुझे ऐसे पत्रकार नहीं बनना, जो किसी के काम न आ सके। पत्रकारिता हमें पत्रकार के रूप में करनी है। इंसान बन कर ही जीना है। हम पत्रकारिता को प्रोफेशन मान बैठे हैं। प्रोफेशन दिमाग से चलता है। उन्होंने कहा कि ये भौतिक सत्य है कि मैं शरीर काम में ले रहा हूं इस समाज के लिए। आपका शरीर काम आ रहा है समझने के लिए। दिमाग आपका काम आ रहा है, सच बोल रहा हूं या झूठ बोल रहा हूं। हर शब्द के उपर दिमाग काम कर रहा है।

 

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पहले खुद को समझना होगा

पत्रिका समूह के प्रधान संपादक ने कहा कि हमें शब्द की साधना करनी चाहिए। हमें शब्द के साउंड को समझना होगा। यहां मेरा शरीर, मेरा दिमाग, मेरा मन काम आ रहा है। अगर हमें पत्रकारिता को समझना है तो हमें पहले खुद को समझना होगा। सम्मान कर रहा हूं, तो अपना कर रहा हूं।

ये बात जिस दिन समझ में आ गई, उस दिन से कोई बाधक नहीं बनेगा। पत्रकारिता के मूल्यों को समझने के लिए आपने आपको देखने का अभ्यास करना होगा। शरीर रूपी इस जड़ चेतन में कई पडाव आते हैं। पहले अपने आपको समझना है।

आम की गुठली का उदाहरण देते हुए पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी जी ने कहा कि हर बीज को पेड़ बन जाना है, यही उस बीज की सार्थकता है। खुद को पेड़ बनना है तो खुद को गड़ना होगा। पत्रकारिता के मूल्यों समझना होगा। तभी हम पेड़ की तरह लोगों को छाया, फल दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम भाग्यशाली हैं कि हमें ब्रह्म के क्षेत्र में काम करने का अवसर मिला है। यहां उदाहरण देते हुए प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने यह भी कहा कि व्यापारी को दिमाग से बात करनी है। मैं पहलवान हूं, तो उसके शरीर की बात समझनी है।

 

प्रोफेशन नहीं मिशन

पत्रकारिता प्रोफेशन नहीं मिशन है। जिसके अंदर चिंगारी नहीं हो, वो पत्रकार नहीं बन सकता। लेने वाले मांगने वाले को कोई याद नहीं करता है। देने वाले को सब याद करते हैं। हम सबको पत्रकारिता के मूल्यों समझते हुए कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिन्दगी में उजाला चाहिए तो तपना पड़ेगा।

प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने पानी की बोतल का उदाहरण देते हुए पानी के साथ शब्द की ताकत को समझाते हुए कहा कि दो बोतल के साथ हम अलग-अलग कमरे में रखें। अब जिस बोतल से जैसा शब्द कहेंगे उस पर उन्हीं शब्दों का भी वैसे असर दिखने लगेगा। अगर हम एक बोतल से नियमित प्रार्थना करेंगे। दूसरे को अपशब्द कहेंगे तो हमें शब्द के साउंड का असर समझ में आएगा।

 

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वर्तमान में मोबाइल, इंटरनेट पर शब्दों से हो रहे खिलवाड़ को लेकर उन्होंने कहा कि शब्दों के तरंगों को नहीं रोका जा सकता। हमें शब्दों को समझना होगा। प्रकाश को रोक सकते हैं। लेकिन शब्द को नहीं रोका जा सकता। प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने कहा कि शब्द की साधना करो, प्रार्थना करो। हमें शब्द का आपमान नहीं करना चाहिए।
प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने कहा कि संत और पत्रकार देते हैं लेकिन बदले में कुछ नहीं लेते। हमें पेड़ रूपी पत्रकार बनना चाहिए। जिससे हम समाज को छाया और फल दे सकें।

छात्रों से संवाद: सवाल जवाब…

प्रश्न – आप हमेशा मीडिया को धर्म, विज्ञान, वेद और आध्यत्म से जोड़ने का बल देते हैं। मैं जानना चाहता हूं आपके मायने धर्म क्या है ?

उत्तर – मेरे धर्म की परिभाषा दूसरी है, मैं अपने धर्म को निजी सम्पदा कहता हूं। मेरा धर्म, मेरे भाई का या मेरे पिता का नहीं हो सकता। मेरा धर्म मेरा ही रहेगा। मेरा धर्म बिल्कुल निजी सम्पदा है, जो मेरा निजी स्वभाव है, सोच है, सपना है। जिसको लेकर मैं जी रहा हूं, जिससे मेरी पहचान बन रही है। इस दौरान डॉ. कोठारी जी ने कहा कि धर्म दो व्यक्तियों का एक नहीं हो सकता। मुझे जिस रूप में समाज जानता है, वो रूप मेरा धर्म है। जिनको हम धर्म कहते हैं वो धर्म नहीं है। बाकि सब सम्प्रदाय हैं। हम दोनों शिष्य भी बनेंगे, तब भी धर्म एक नहीं हो सकता। जब तक संकल्प साधना के साथ हम एकाकार नहीं हो जाएंगे। तब तक धर्म एक नहीं हो सकता।


प्रश्न – आज का पत्रकार क्या मूल्यों से समझौता नहीं कर रहा है और पत्रकार अपनी पीढ़ी के लिए क्या मूल्य स्थापित कर रहा। इस पर आपके विचार…

उत्तर – पत्रकारिता में मेरा अपना सपना क्या है। इसमें अच्छा बुरा नहीं सोचना है। मेरे क्या संकल्प है। आपके भीतर से ही आपके उत्तर मिलेंगे। आप पत्रकार बनकर क्या करना चाहते हैं वह आपके अंतर्मन के इसी उत्तर में समाहित है।

प्रश्न – मीडिया धीरे-धीरे कॉर्पोरेट होते जा रहे। इससे आदर्श पत्रकारिता के लिए हमारे द्वारा क्या किया जा सकता हैं।

उत्तर – इंजीनियर जो तय कर लेगा वैसा बन जाएगा। इसलिये पत्रकार के लिए पहले तो ये तय करना है की उसे क्या करना है और क्या नहीं करना। हमें क्या नहीं करना है, उस पर चिंतन करना होगा। हमें दूसरे को देखकर नहीं करना, लेकिन हमें सबको साथ ले कर चलना है।

प्रश्न – पत्रकारों को ये तय कर दिया जाता है कि वो इस विचारधारा, धर्म, जाति का है। इसी आधार पर हमें जज किया जाता है कि हमारा विचार क्या होगा। ऐसे में हम अच्छी पत्रकारिता कैसे करें जिससे मुझ पर किसी का टैग न लगे।

उत्तर – वर्ण प्रकृति का दिया हुआ है, समाज का दिया हुआ नहीं है। प्रकृति की ऐसी कोई चीज नहीं है जिसमें वर्ण, जाति न हो। पशु-पक्षियों, जानवरों और पत्थरों में वर्ण है। इसे ज्योतिष के अनुसार समझा जा सकता है। जैसे गलत वर्ण का पत्थर गलत असर करेगा। समाज का संबंध जातियों से है। वर्ण प्रकृतिप्रद्त व्यवस्था है। आश्रम और जाति सामाजिक व्यवस्था है। इसलिए हमें छोटा या बड़ा का भाव नहीं रखना चाहिए। इस दौरान डॉ. कोठारी जी ने कहा कि प्रकृति ने किसी को अच्छा-बुरा पैदा नहीं किया। इसलिए कोई भी व्यक्ति अच्छा बुरा नहीं है। उदाहरण देते हुए डॉ. कोठारी जी ने कहा कि यदि मैंने सोचा की वो अच्छा है, तो उसमें मुझको बुराई नजर नहीं आएगी और यदि मैंने सोचा वो बुरा है तो उसमें कोई अच्छाई नजर नहीं आएगी। दोनों ही परिस्थिति में मेरे निर्णय गलत होंगे।

पत्रकार का धर्म है कि जो जैसा है उसे वैसा ही देखने का अभ्यास करें। अपनी तरफ से उसमें कुछ नहीं जोड़े तब आपकी रिपोर्टिंग बेस्ट होगी। समाचारों की रिपोर्टिंग में आपने आपको बाहर रखो। आप किसी भी धर्म, जाति के हो, लेकिन अपनी रिपोर्टिंग को इससे बाहर रखो। अपने कर्म पर विश्वास रखो। मैंने जो किया है वहीं मिलेगा। मेरा परिणाम किसी और को नहीं मिलेगा। हमें किसी से अपेक्षाभाव नहीं रखना चाहिए। अपेक्षा के कारण हम दुखी होते हैं।

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