भोपाल

खनन से पहले नहीं कराते पुरातात्विक जांच

इंटरव्यू… डॉ. नारायण व्यासमेम्बर, नेशनल मॉन्यूमेंट अथॉरिटी, डॉ. वाकणकर शोधपीठ, राष्ट्रीय अभिलेखागार

भोपालMar 07, 2019 / 09:57 am

दिनेश भदौरिया

खनन से पहले नहीं कराते पुरातात्विक जांच

भोपाल. शहर में खनन की अनुमति देने से पहले उस स्थान या पहाड़ी की विशेषज्ञों द्वारा यह जांच नहीं कराई जाती कि उसका ऐतिहासिक, पुरातात्विक और सांस्कृतिक महत्व क्या है और वहां कौन सी धरोहरें या निशान मौजूद हैं। इसके अलावा भोपाल की सांस्कृतिक विरासत को भी पर्यटन की दृष्टि से सहेजा-संवारा नहीं जा रहा है। इस बारे में पत्रिका एक्सपोज ने वरिष्ठ पुरातत्वविद् डॉ. नारायण व्यास से बातचीत की:
सवाल: भोपाल व आसपास के क्षेत्रों में पुरातात्विक धरोहरों की मौजूदा स्थिति क्या है?
जवाब: राजधानी के कोलार रोड पर कठौतिया, झिरी, जावरा, बगरोदा, बालमपुर घाटी, आरजीपीवी यूनिवर्सिटी की पहाडिय़ों में कई आदि विरासतें हैं। विश्व में इनका बड़ा पुरातात्विक महत्व है, लेकिन जानकारी के अभाव में ये मिटती जा रही हैं। इन्हें बचाया नहीं गया तो मानव सभ्यता और संस्कृति से हमारा महत्वपूर्ण संपर्क खत्म हो जाएगा।
 

सवाल: बगरोदा और बालमपुर की पहाडिय़ों पर खनन में पुरातात्विक महत्व की चीजें भी नष्ट हुईं?
जवाब: यह गलत तरीका है। खनिज विभाग को परमीशन देने से पहले पुरातत्व विभाव को जानकारी देकर जांच करानी चाहिए। मैंने बगरोदा, बालमपुर घाटी और आरजीपीवी की पहाडिय़ों से अत्यंत प्राचीन व महत्वपूर्ण स्टोन टूल्स प्राप्त किए थे। यहां ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व की चीजें हैं।
सवाल: राजधानी में भी कौन सी धरोहरें संरक्षित की जा सकती हैं?
जवाब: राजधानी में पुरानी बावडिय़ां, फतेहगढ़ का किला, पुराने भवन बड़े महत्व के हैं। रॉयल मार्केट में किले के बुर्ज, पुराने दरवाजे आदि संरक्षित किए जाने के लिए कहा गया है। भोपाल का इतिहास इन स्मारकों से जुड़ा हुआ है।
सवाल: विश्व के कौन-कौन से देशों ने आपके सुझावों को महत्व दिया और मध्यप्रदेश में ध्यान नहीं दिया जा रहा?
जवाब: हमारे साथ विश्व के कई देशों के पुरातत्वविद् जुड़े हुए हैं। स्पेन में शैलचित्रों की स्टडी के लिए बुलाया गया। वहां हमारी योजना व दिशा-निर्देश पर काफी काम हुआ। बर्मा में हमारे प्लान को लागू कर धरोहरों को सहेजा गया।
 

सवाल: इस समय उत्खनन की कहां सबसे अधिक जरूरत है?
जवाब: कोलार रोड पर गोल गांव से मंडीदीप रोड पर राजा भोज के समय की सभ्यता के प्रमाण मिलते हैं। यहां उत्खनन किया जाए तो बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां व धरोहरें मिल सकती हैं।
सवाल: पुरातात्विक धरोहरें नष्ट हो रही हैं, इन्हें बचाने के लिए क्या उपाय हैं?
जवाब: इस तरह उदासीनता से विरासतें नहीं बचेंगी। पुरातात्विक व एतिहासिक धरोहरों को बचाने के लिए राज्य पुरातत्व विभाग, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, वन विभाग और पर्यटन विभाग एक विशेष विंग तैयार करें, जो सिर्फ पुरातात्विक धरोहरों व स्मारकों को संरक्षित व विकसित करने का काम करे। इसके लिए ब्लूपिं्रट तैयार है।
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