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गरीब मेधावी प्रतिभाओं को निखारने में समर्पित किए जीवन के तीन दशक

locationभोपालPublished: Mar 03, 2019 04:15:20 pm

केमिस्ट्री स्कॉलर डॉ. नीलम दुबे ने कई शहरों में की समाजसेवा…

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गरीब मेधावी प्रतिभाओं को निखारने में समर्पित किए जीवन के तीन दशक

भोपाल. केमिस्ट्री स्कॉलर बनकर यूएस में रिसर्च करने नहीं जा सकीं, तो उन्होंने बच्चों को इस विषय के ज्ञान से लैस करने का बीड़ा उठाया। वर्ष दर वर्ष समय बीतता गया और उनके पढ़ाए बच्चे अलग-अलग क्षेत्रों में नाम रोशन करते गए। पति के रिटायरमेंट के बाद भोपाल में ही सेटल होकर ज्ञान बांटने का कार्य लगातार किया जा रहा है।

बावडिय़ा कलां की एम्पल हाइट्स कॉलोनी निवासी डॉ. नीलम दुबे के पिता स्वर्गीय एबी मिश्रा आगरा यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में प्रथम डीलिट थे। उनकी माता भी इकोनॉमिक्स में एमए थीं। उन्होंने उज्जैन से केमिस्ट्री में एएससी करने की। इसके बाद उनकी शादी हो गई तो शादी के बाद इंदौर से केमिस्ट्री में पीएचडी की। केन्द्र सरकार के सीएसआइआर से सीनियर रिसर्च फेलोशिप मिलने के बाद पारिवारिक कारणों के चलते यूएस में रिसर्च के लिए नहीं जा सकीं और पति के साथ उनके तैनाती स्थल सिंगरौली चली गईं। यहां वे डिपे्रशन में आने लगीं तो लोगों ने जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाने की सलाह दी। उन्होंने वहां शुरू हुए डीपीएस स्कूल ज्वाइन किया और फिर बच्चों को पढ़ाने में जुट गईं।
इस स्कूल को कक्षा एक से 12वीं तक बढ़ाने में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। इसके बाद विन्ध्य नगर में कई वर्षों तक बच्चों को पढ़ाया। पढ़ाने के साथ सही काउंसलिंग के बेहतर परिणाम मिले। पढ़ाने का तरीका इतना अच्छा था कि जिस स्टूडेंट की हमेशा सप्लीमेंट्री आती थी, उसे अच्छे पढऩे वालों में शुमार कराया।
आज ऐसा एक बच्चा दिल्ली के नामचीन हॉस्पिटल में सीएमओ है। कोरबा में उन्होंने स्कूल में पढ़ाना छोड़कर स्वतंत्र रूप से पढ़ाना शुरू किया। तीन सौ से अधिक बच्चों को केमिस्ट्री की पढ़ाई कराई। उनकी बेटी अमेरिका में है और आइआइटी पासआउट बेटा पुणे में सर्विस कर रहा है। नागपुर से पति के रिटायरमेंट के बाद अब वे भोपाल में स्थाई रूप से रह रही हैं और बच्चों को पढ़ाने का क्रम अभी तक जारी है। उनका कहना है कि उन्होंने सबसे अधिक उन स्टूडेंट्स को पढ़ाया, जिनके गार्जियन ये विश्वास खो चुके होते थे कि उनका बच्चा कुछ कर सकेगा।

ये मिले सम्मान

डॉ. नीलम को यंग साइंटिस्ट कांग्रेस में (वर्ष 1987) यंग साइंटिस्ट ऑफ एमपी के गोल्ड मेडल से नवाजा गया। उन्हें सीआइआइआर से सीनियर रिसर्च फेलोशिप भी प्रदान की गई। पढऩे में मेधावी डॉ. नीलम ने लगभग ढाई वर्ष में ही अपनी पीएचडी कम्पलीट कर ली थी। विक्रम यूनिवर्सिटी उज्जैन में बेस्ट स्टूडेंट का खिताब भी दिया गया। इसके सिवा उन्हें टेबल टेनिस, डिबेट, डांस समेत कई प्रतियोगिताओं में पुरस्कार व सम्मान से अलंकृत किया गया।
केस -1
जब नीलम दुबे के पति भरत दुबे एनटीपीसी इलाहाबाद क्षेत्र में तैनात थे, उस समय एक निजी स्कूल के चतुर्थ कर्मचारी के पास बेटे को पढ़ाने के लिए आर्थिक इंतजाम नहीं था। उस कर्मचारी का बेटा पढऩे की ललक रखता था। उसने अपनी इच्छा नीलम को बताई। इसके बाद उन्होंने उस बच्चे को पढ़ाया। होनहार बच्चा आज मुंबई में एक बड़ी राष्ट्रीयकृत बैंक में प्रबंधक के पद पर है। उसके पिता आज भी उसी स्कूल में जॉब करते हैं। पूरा परिवार बहुत हर अवसर पर यादकर सम्मान देता है।

केस -2
कोरबा में उनके प्रवास के दौरान एक ऐसा बच्चा आया, प्रतिभावान होते हुए हीनभावना से ग्रसित था। वह बच्चा हिंदी मीडियम से पढ़कर आया था और आगे इंग्लिश मीडियम में आने पर वह परेशान था। मैंने काउंसलिंग कर उस बच्चे की हीनभावना को दूर किया और पूरी लगन के साथ पढ़ाया। आज वह बच्चा देश का जाना-माना ऑर्थोपीडिक सर्जन है। उससे अकसर बातचीत होती रहती है।

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